Book Title: Prakritadhyaya
Author(s): Kramdishwar, Satyaranjan Banerjee, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
संक्षिप्तसारे प्राकृताध्यायः
[II. 43
Vr. II.41 RT.I.2.16 Mk. II. 40
Ho.1.49.265 T.I.2.18 . I. 8.90
He, I. 256
Vr. II.40 RT.I.2.16 Mk. II. 39
T. I. 3. 82
Vr. I. 32 &
III. 81
Ho. II. 197
छः षडादेः॥४३॥ छ षट् ॥ षष्ठ शाव सप्तपर्ण ॥ [ छछ। छाव। छत्तवण्ण । ] टीका। षट्पदः छप्पदो इत्यादीनामेवं साध्यम् ॥
णो लागलादेः ॥४४॥ णंगलं । णोहलो ॥ लोहलः स्याद् अस्फुटवाग इत्यमरः ॥
वृक्षस्य सस्वरो रुर्वा ॥४॥ RT.. वृक्षशब्दस्यादिवर्णः स्वरसहितो रुर्वा भवति ॥ रुकखो वच्छो वा ॥ वृक्षः।
[अथ युक्तविधिः ] लुक् कादियुक्तस्य ॥४६॥
युक्तस्यादिः ककारादिलुंग भवति ॥ भुत्त ॥ग ॥ दुद्धं । ड्॥ खग्गो । त् ॥ उप्पत्ती ॥।। गग्गरो ।।प्॥ समत्त ॥ ॥ ट्ठि,रो ॥स् ॥ पत्थर।। भुक्तम्। दुग्धम् । खड्गः । उत्पत्तिः । गद्गदः । समाप्तम् । निष्ठुरः । प्रस्तरम् ॥
Vr. III.
B He. II. 79 आधु पान्त-लवरः॥४७॥ उक्का । पिक्क । चकं ॥ उल्का । पकम् । चक्रम् ॥
टीका। युक्तस्यादिभूता उपान्तभूता वान्तस्वरात् प्राक् स्थिता ये लवरा इति त्रयो वर्णास्तेषां लोपो भवति ॥
उपान्त-मनयश्च ॥४८॥ जुग्गं । भग्गो। संखा ।। युग्मम् । भमः । संख्या ।
Vr. III.1 RT.I 3.1 Mk. III.1.
He. II.77 T. I.4.77
T.I.4.78
RTI.3.1 Mk. III.3
Vr. III.2 RT. I. 3. I Mk. III. 2
Ho. II.78 T.I.4.79
___1) Found in S1 only. 2) P. लोहल। 3) Not found in B. 4) This vrtti is found in the margin of S1 only. 5) P. पत्थानं । 6) Found in S, only.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140