Book Title: Prakritadhyaya
Author(s): Kramdishwar, Satyaranjan Banerjee, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
संक्षिप्तसारे प्राकृताध्यायः
[I. 32
Vr. I. 28H RT. I. 1. 15 ME.I.34
. I. 128 T. I. 2.75
Vr. I.83 RT. I. 1. 19 Mk. I.39-40
He. I. 145 T.I. 2.92
Vr. I.34 RT. I.1.19 ME. I.41
Ho. I.146 T.I.2.93
- ऋष्यादेरित् ॥३२॥
अध्यादेः ऋद्' इद् भवति ।। इसि ऋषिः॥ गृष्टि दृष्टि सृष्टि मृगाङ्क कृत हृदय ममृण वितृष्ण बृहित कृषर कृष्ण कृत्य भृत्य वृष्टि वृश्चिक कृति हृति तृप्ति भृङ्ग भृङ्गार शृङ्गार शृगाल कृपा कृपाण ॥ [ गिट्ठि। दिट्ठि। सिट्टि । मिअक। किअकअ । हिअअ । मसिण। विइण्ह । बिहिअ । किसर । किसण (II. 53) कण्ह ( II. 53)। किश्च । भिच्च । विट्ठि। विचुंअ ( I. 22; II. 65)। किइ । हिइ। तित्ति। भिंग। भिंगार। सिंगार। सिआल । किवा । किवाण ।]
लद् इलिः क्लूप्ति-क्लप्तयोः ॥३३॥ किलित्ती ।। क्लूप्तिः ॥
एद् इद् वा वेदना-देवरयोः ॥३४॥ वेदना-देवरयोरेद् इद् वा भवति ॥ वेअणा विअणा वा। देअरो दिअरो वा ॥ वेदना। देवरः॥
ऐत् ॥३॥ ऐकार एद् भवति ॥ सेवो॥ शैवः ॥
ईद् धैर्ये सैन्धवे ह्रस्वः ॥३६॥ धीरं । सिध ॥ धैर्यम् । सैन्धवम् ।। ____ अइदैत्यादेः ॥३७॥
दैत्यादेः ऐद् अइर्भवति ॥ दइच्चो' दैत्यः ॥ चैत्र भैरव कैरव वैदेशिक वैश्य वैदेही वैशाख वैषयिक वैषम्य वैशम्पायन ॥ [चइत्त । भइरव । कइरव । वइदेसिअ । वइस्स । वइदेही । वइसाह । वइसइअ । वइसम्म । वइसंपाअण । ]
1) C1-रिग् P. ऋत् । 2) B. धृष्टि। 3) After this P has कृष्ण । 4) Not found in B. 5) P. ईद्वा। 6) B. सिन्धवम् । 7) B. दैत्तो।
Mr. I. 35 RT. I. 1.19 Mk. I.42
Hc, IQ 148 T. I.2.101
Vr. I. 39 Ho. I. 155 RT. I.1.21-22 T. I.2.108 Mk. I.45-46
Vr.I.36 RT. I. 1.20 Mk. I. 43
H c. I. 151 T.I.2.103
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140