Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 7
________________ मंगलाचरण / / श्रीशान्तिसागराय नमः / / आचार्यश्रीकुन्थुसागरविरचितम् आचार्यश्रीशान्तिसागरस्तोत्रम् कः।।4।। श्रेष्ठजातिकुलोत्पन्नो निर्ग्रन्थो दोषदूरगः। * स्वान्तर्लीनः सदानन्दो दशधर्मपरायणः।। 1 / / स्वाध्यायध्यानधर्मेषु भव्यानां स्थितिकारकः। प्रभावनाविधौ दक्षः सर्वेषां दुःखहारकः।। 2 / / निःशल्यो निर्मदः शान्तो जीवानां प्रतिपालकः। निन्दास्तुतौ वियोगे च समतारसतत्परः।। 3 / / षट्त्रिंशत्सुगुणैर्युक्तो मुनिवृन्दनमस्कृतः। द्रव्यक्षेत्रानुसारेण प्रायश्चित्तविधायकः।। 4 / / सदाधीरः क्षमावीरो दयालुभक्तवत्सलः। शान्तिसिन्धुर्दयामूर्तिस्तत्त्वज्ञानपरायणः।।5।। पूतात्मा सकलैः पूज्यः स्तुत्यात्मा योगतत्परः। मुनीनां श्रावकाणां च चारित्रप्रविधायकः।। 6 / / येन स्वस्य विहारेण सर्वे विजाः शमीकृताः। अत एव सदा वन्द्य आचार्यः शान्तिसागरः।।7।। तस्याचार्यस्य शिष्येण कंथसागरयोगिना। भवबीजविनाशाय स्तोत्रमेतत्कृतं मया।।8।। भवभीतिविनाशाय लब्धं शान्तिं सुखं तथा। इदं स्तोत्रं पठेन्नित्यं श्रद्धाभक्तिसमन्वितम्।।9।। * प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 105

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