Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 20
________________ Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 11) (p. 44) Atha Sanskrit-Sūraseni-sle samāhaAdharadalamte...... अधरदलं ते तरुणा मदिरामदमधुरवाणि सामोदम् । साधु पिबन्तु सुपीवरपरिणाहिपयोधरारम्भे ॥ (IV. 20) 12) (p. 44) Sanskritāpabhramsa-flesamāhaKridanti prasaranti...... क्रीडन्ति प्रसरन्ति मधु कमलप्रणयि लिहन्ति । भ्रमरा मित्र सुविभ्रमा मत्ता भूरि रसन्ति । (IV. 21) 13) Atha prasnottaramahaUdyandiva sakaro...... (p. 59 ). उद्यन्दिवसकरोऽ सौ किं कुरुते कथय मे मृगायाशु । कथयानिन्द्राय तथा किं करवाणि क्वणितुकामः ॥ अहिणवकमलदलारुणिण माणु फुरत्तिण (? फुरंतिण) केण। जाणिज्जइ तरुणीअणस्स निद्धा (?) भण अहरेण ॥ ( IV. 31-32) V. no. 31 is in Sanskrit. The Prakrit verse no. 32 may be rendered in Sanskrit as follows : . (अभिनवकमलदलारुणेन मानः स्फुरता केन । ज्ञायते तरुणीजनस्य स्निग्ध भण 'अहरेण ॥) Note : The word aharena ' is explained by Namisadhu as follows : अत्र यथाक्रमं यथाभाषं चोत्तरमाह - 'अहरेण' इति । तत्र अहर्दिनम् । एण हे मृग । तथा अह रेऽ निन्द्र । अण शब्दं कुरु । तथा प्राकृतोत्तरम् - अहरेणाधरेण ।ओष्ठेनेत्यर्थः । इत्युत्तरत्रयं युगपदुक्तम्। (p. 60) *14) Namisadhu, when commenting on Rudrata VI. 32-33, gives the following example in Prakrit to illustrate that repetition which is found in common use does not constitute a defect. Tā kimpi kimpi tā kaha...... (p.69) ता कि पि कि पिता कहवि (कह वि) अव्वो निमीलियच्छीहि । कडुओसहं व पिज्जइ, अहरो थेरस्स तरुणीहि ॥ (तावकिमपि किमपि तावत्कथमपि कथमप्यहो निमीलिताक्षिभिः। कटु औषधमिव पीयते ऽधरो स्थविरस्य तरुणीभिः ॥) .

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