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प्रथम स्तरीय प्राकृत से विकसित प्राकृत शब्दावली
संपादक की कलम से
यहाँ यह समझा जाना चाहिए कि “प्रथम स्तर की प्राकृत भाषाएँ स्वर और • व्यंजन के उच्चारण में तथा विभक्तियों के प्रयोग में वैदिक भाषा के अनुरूप थी। इससे
ये भाषाएँ विभक्ति बहुल कही जाती है।” वैदिक भाषा पाणिनि के द्वारा नियन्त्रित होकर स्थिर हो गई और संस्कृत कहलाई।
वैदिक युग में जो प्राकृत भाषाएँ बोलचाल में प्रचलित थी, उनमें अनेक परिवर्तन हुए, “जिनमें ऋ आदि स्वरों का, शब्दों के अन्तिम व्यंजनों का, संयुक्त व्यंजनों का तथा विभक्ति और वचन समूह का लोप या रूपान्तर मुख्य है। इन परिवर्तनों से यह भाषाएँ प्रचुर परिमाण में रूपान्तरित हुई। इस तरह से द्वितीय स्तर की प्राकृत भाषाओं की उत्पत्ति हुई।"
भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के समय में ये प्राकृत भाषाएँ अपने द्वितीय स्तर के आकार में प्रचलित थी और जनता के प्रयोग में आ रही थी। अतः उन्होंने अपने सिद्धान्तों का उपदेश इन्हीं प्राकृत भाषाओं में किया। यहाँ यह जानना उपयोगी है कि द्वितीय स्तर की प्राकृत भाषाओं की उत्पत्ति प्रथम स्तरीय प्राकृत से हुई। काल दृष्टि से हम जितना पीछे जाते हैं उतना ही वैदिक संस्कृत-प्राकृत का अन्तर कम होता जाता है क्योंकि इनकी उत्पत्ति का स्रोत प्रथम स्तरीय प्राकृत है। इसलिए वैदिक संस्कृत-प्राकृत में समानता दृष्टिगोचर होती है।
इस तरह द्वितीय स्तर की प्राकृत भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत के द्वितीय आकार की शब्दावली का एक अच्छा संकलन हेमचन्द्र ने प्राकृत व्याकरण के प्रथम व द्वितीय पाद में दिया है। आचार्य हेमचन्द्र ने लौकिक संस्कृत के आधार से इसे समझाने का प्रयास किया है। यह प्राकृत के दृष्टिकोण से हमारे लिये उपयोगी नहीं
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प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1)
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