Book Title: Prakrit Hindi Vyakaran Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 190
________________ विशेषण चउद्दह = चौदह अणिट्ठ = अनिष्ट चउव्वार = चार बार अथिर = चंचल, अनित्य छुत्त = छुआ हुआ अन्नन्न = परस्पर ठविअ = स्थापित किया हुआ अप्पज्ज = अपने आपको जानने वाला णिच्चल = स्थिर अप्पण्णु = आत्म-तत्त्व को जाननेवाला पिल्लज्ज = लज्जा रहित अरिह = योग्य तइअ = तीसरा आगअ = आया हुआ तविअ = तपा हुआ आढत्त = शुरु किया हुआ तारिस . = वैसा आगमण्णू = आगम को जाननेवाला तिक्ख = तीखा इअर = अन्य तिप्प = तृप्त ल = अभिलषित, प्रिय तेत्तिअ = उतना ईसालु = ईर्ष्यालु, द्वेषी थुल्ल = मोटा उक्किट्ठ = उत्कृष्ट, उत्तम थोअ, = थोड़ा उक्खित्त = फेंका हुआ उज्जल = निर्मल, स्वच्छ दच्छ = निपुण, चतुर उव्विग्ग = घबराया हुआ व = दाँत से काँटा हुआ एअ = एक (सं.वि.) दड्ड = जला हुआ एआरिस = ऐसा दीह = लम्बा एक्क. = एक (सं.वि.) दुइअ = दूसरा कण्ह = काला रंग दुक्कर = जो कठिनाई से किया जाय कय = किया हुआ । दहिअ = पीड़ित, दुःखयुक्त किलिट्ठ = कठिन धारिअ = धारण किया हुआ केरिस = कैसा धिट्ट = धीठ गमिर · जानेवाला निच्चल = स्थिर गहिर = गहरा, गंभीर निठुर = निष्ठुर पुरुष चोगुण, = चार गुना निद्धन = निर्धन . चउग्गुण निल्लज्ज = लज्जा रहित चउत्थ, = चौथा निहिअ = स्थापित, रखा हुआ चउत्थी नीसास = निश्वास लेने वाला पडिकूल = प्रतिकूल प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1) (177) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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