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पाठ 8 : मेरुप्पभस्स हत्थिणो अणुकंपा
पाठ-परिचय :
ज्ञाताधर्मकथा प्राकृत आगम ग्रन्थों में प्रमुख ग्रन्थ है। इसमें भगवान् महावीर के उपदेशों को कथाओं और दृष्टान्तों के द्वारा समझाया गया है। इस ग्रन्थ की रचना ईसा के पूर्व 2-3 री शताब्दी में हो चुकी थी। इस ग्रन्थ में प्रमुख रूप से 19 कथाएं हैं। उनमें एक मेधकुमार की कथा है, जिसमें उसके वैराग्यपूर्ण जीवन का वर्णन है।
इस मेघकुमार की कथा में उसके पूर्व-जन्मों की कथा भी भगवान् महावीर द्वारा कही गयी है । उसमें एक बार मे वकुमार मेरुप्रभ हाथी था। मेरुप्रभ हाथी ने एक बार जंगल में आग लग जाने पर स्वयं कष्ट सहकर एक खरगोश के जीवन की रक्षा की थी। जीव-रक्षा के प्रति उसकी इसी अनुकम्पा का वर्णन इस कथा में है। इस गद्यांश की भाषा अर्धमागधी प्राकृत है।
तए णं तुमं मेहा! पुत्वभवे चउद्दते मेरुप्पभे नाम हत्थी होत्था । अन्नया तं वरणदवं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए समुप्पज्जित्था- 'तं सेयं खलु मम इयारिंग गंगाए महानदीए दाहिणल्लंसि कूलंसि विझगिरिपायमूले दवग्गिसंजायकारणट्ठा सएणं जूहेणं महालयं मंडलं घाइत्तए' त्ति कटु एवं संपेहेसि । संपेहित्ता सुहं सुहेणं विहरसि ।
अन्नया कयाइं कमेण पंचसु उउसु समइक्कतेसु गिम्हकालसमयंसि जेट्टामूले मासे पायव-संघस-समुट्ठिएणं संवट्टिएसु मिय-पसु-पक्खि-सिरीसिवेसु दिसोदिसि विप्पलायमाणेसु तेहिं बहूहि हत्थीहि य सद्धि जेणेव मंडले तेणेव पहारेत्थ गमरणाए।
तत्थ णं अण्णे बहवे सोहा य, वग्घा य, विगया दीविया, अच्छा य, रिच्छतरच्छा य, पारासरा य, सरभा य, सियाला, विराला, सुणहा, कोला
प्राकृत गद्य-सोपान
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