Book Title: Prakrit Gadya Sopan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 199
________________ पाठ २८ : साधु - जीवन थोड़ा हंसकर सफेद दांतों की पंक्ति को दिखाने वाले राउल ने कहा'इसमें खेद का विषय नहीं है । माता-पिता से बढ़कर और क्या श्रेष्ठ है ? उनकी सेवा तो देवता की सेवा है। उनका दर्शन तो देव-दर्शन है। उनकी आज्ञा मानना देव-आज्ञा का पालन करना है । कीड़े की तरह कुल को आग लगाने वाले उस पुत्र से क्या लाभ, जो अपने माता-पिता के लिए सुख देने वाला नहीं होता। किन्तु यह कार्य तुम्हारे जैसे गृहस्थों का नहीं है, अपितु मेरे जैसे योगियों के लिए तो इस कार्य को सम्पन्न करना बांये हाथ का खेल है।' .. . 'हे सुकुमार शेखर ! गृहस्थ : लोगों के लिए हेमन्त ऋतु अनुकूल नहीं है। जब (इस ऋतु में) जगत् को कंपाने वाली उसरी अत्यन्त शीतल तेज हवा चलती है तब कौन सुखी गृहस्थ घर से निकलता है ? अनेक ऊनी वस्त्र पहिनकर, शक्तिदायक औषधियों से मिश्रित विशेष प्रकार के मिष्ठान्न को खाकर, स्त्री और पुत्रों से घिरा हुआ, अग्नि के पास बैठा हुआ व्यक्ति (हेमन्त के दिनों को व्यतीत करता है। उस हेमन्त ऋतु में आसक्तिरहित, जटाधारी, श्रमण, तापस, फटे वस्त्र वाला अथवा दिगम्बर साधु वृक्ष के नीचे ठहर कर भी आनन्दपूर्वक ध्यान करता है, और परम इष्टदेव को स्मरण करता है, भूख को सहन करता है और सुखपूर्वक शीतकाल को व्यतीत करता है। ___इसी प्रकार सांसारिक (भोगी) लोगों के लिए ग्रीष्मकाल भी अनुकूल नहीं है । उस समय सूर्य अत्यन्त तीव्र किरणों से तपता है । धरती अग्नि की तरह हो जाती है । सारा वातावरण तपा हुआ हो जाता है और न सहने योग्य हवा चलने लगती हैं । बार-बार पोंछने पर भी पसीना नहीं सूखता है । प्यास से व्याकुल ओंठ, तालु, कंठ अच्छी तरह से पानी पीने पर भी 'पानी कभी नहीं पिया है ऐसा अनुभव करते हैं । उस गरमी में सभी भोग सामग्री को प्राप्त अनेक तरह के शीतल-पेय को पीता हुआ वातानुकूलित घर में रहता हुआ कौन पुण्यवान् व्यक्ति घर को छोड़ना चाहेगा ? ऐसी ग्रीष्मऋतु में भी मुनि जहाँ कहीं पर ठहरकर जो कुछ भी ठंडा 190 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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