Book Title: Prakrit Gadya Sopan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 193
________________ तब भी वह भोजन करके शिघ्र उठ गया। तभी उस स्त्री ने अपने घर के भीतर से अमृतरस की कुपिया लाकर अग्नि में छिड़काव किया । उससे हँसता हुआ बालक निकल आया। माता ने उसे गोद में ले लिया। तब वह घ्यान करता है-'अहो ! आश्चर्य है, आश्चर्य है जो इस प्रकार अग्नि में जले हुए को भी जीवित कर लिया गया । यदि यह अमृतरस मेरे पास हो तो मैं भी उस कन्या को जीवित कर दूं।' इस प्रकार सोचकर वह धूर्तता से कपटवेश धारण कर रात्रि में वहीं ठहर गया। अवसर पाकर उस अमृत-कुपिया को लेकर वह हस्तिनापुर आ गया। फिर उस वर ने पिता आदि के सामने चिता के बीच में अमृतरस को डाला। वह सुमति कन्या अलकारों सहित जीवित होती हुई उठ आयी। तब उसके साथ एक वर भी जीवित हो गया। कर्मों के वश से फिर वे चारों वर एक ही स्थान पर इकट्ठे हो गये । वे कन्या के साथ विवाह करने के लिए झगड़ते हुए बालचन्द्र राजा के दरबार में गये। चारों ने राजा से अपना-अपना वृतान्न कहा । राजा ने मन्त्रिों से कहा कि- 'इनके झगड़े को निपटाकर किसी एक वर को प्रमाणित करो।' सभी मन्त्री आपस में विचार करते हैं, किन्तु किसी से वह झगड़ा नहीं निपटा । तब एक मन्त्री ने कहा यदि आप सब स्वीकार करें तो मैं इस झगड़े को निपटाता हूँ। उन्होने कहा- 'जो राजहंस की तरह गुण-दोषों की परीक्षा करके पक्षपात से रहित विवाद को निपटाता है उसके वचन को कौन नहीं मानता ?' तब उस मन्त्री ने कहा-'जिम वर के द्वारा कन्या जीवित की गयी है वह वर उसे जन्म देने में कारण होने से उसका पिता हो गया। जो वर उस कन्या के साथ जीवित हुआ है वह जन्म-स्थान एक होने के कारण कन्या का भाई हो गया। जो वर उसकी अस्थियों को गंगा में डालने गया था वह मृत्यु के बाद पुण्य-कार्य करने वाला होने से कन्या का पुत्र हो गया। किन्तु जिस वर के द्वारा उस स्थान की रक्षा की मया वह वर (रक्षा करने के कारण) पति हुआ।' 000 184 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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