Book Title: Prakrit Gadya Sopan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 194
________________ इस प्रकार मन्त्री के द्वारा झगड़ा निपटा देने पर रूपचन्द्र नामक चौथे वर के साथ वह कन्या व्याह दी गयी। क्रमशः वह अपने मगर को लौट आया। बाद में उस कन्या के प्रभाव से उसी नगर में ही वह राजा बन गया । क्योंकि गाथा-1. कहीं पर वर के पुण्य से, कहीं पर महिला के सत्पुण्यों के योग से और कहीं पर दोनों के पुण्य से समृद्धि प्राप्त होती है। 000 पाठ २६ : श्रेष्ठतम पुतली एक बार राजा भोज की सभा में कोई एक विदेशी आया। तब उस सभा में कालिदास आदि अनेक विद्वान् थे। वह विदेशी राजा को प्रणाम करके कहता है. 'हे राजन् ! आपकी सभा को अनेक श्रेष्ठ विद्वानों से अलंकृत जानकर तीन पुतलियों के मूल्य कराने के लिए मैं आपके समीप में आया हूँ ।' . __ऐसा कहकर वह समान ऊँची, समान रंग और समान रूप वाली तीन पुतलियों को राजा के हाथ में देकर कहता है- 'यदि श्रीमान्, आपके श्रेष्ठ विद्वान् इनके उचित मूल्य को (निश्चिंत) कर देंगे तो आज तक अन्य राजाओं की सभाओं में लोगों के द्वारा जो मैंने विजय से अकिंत एक लाख चांदी की मुद्राएप्राप्त की हैं वे उन्हें दी जायेंगी। अन्यथा विजय के चिन्ह से अंकित एक लाख स्वर्ण मुद्राएं आपसे मैं ग्रहण करूंगा।' राजा के द्वारा वे पुतलियाँ मूल्य-निर्धारण करने के लिए विद्वानों को दी गयीं। कोई विद्वान् कहता है- 'हे 'मणिकार ! तुम कसोटी से इन पुतलियों के स्वर्ण की परीक्षा कर लो। और तराजू पर रखकर उनका मूल्य अकित कर दो। तब वह विदेशी थोड़ा हंसकर कहता है- 'इस प्रकार से मूल्य-निर्धारण करने वाले तो संसार में बहुत हैं । इनका सच्चा मूल्य यदि हो सके तो उसके लिए राजा भोज की सभा में मैं आया हूँ। ऐसा सुनकर पंडित लोग पुतलियों को हाथ में लेकर उन्हें अच्छी तरह देखते हैं। प्राकृत मद्य-सोपान. 185 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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