Book Title: Prakaran Ratna
Author(s): Nagardas Pragjibhai
Publisher: Nagardas Pragjibhai

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Page 197
________________ [१९२] गाड़ा, बहु सलिलु प्पिलोदगा. बहु वि. थको दगायावि, एवं जासेझ पन्नवं ॥ ३९ ॥ तदेव सावधं जोगं, परस्साए निवियं, कीरमाणंवा नच्चा, सावळं नलवे मुणी ॥ ४८ ॥ सुकडे ति सुपक्केत्ति सुच्छिन्ने सुहडे मडे, सुनिठिए सुलठेत्ति, सावळं वझए मुणी ॥ ४१ ॥ ( काव्यम् . ) पयत्ति पक्केत्ति व पक्कमालवे, पयति च्छिन्नेति वच्छिन्न मालवे, पयत्ति लठेत्तिव कम्महे - यं, पाहारगाढेत्ति व गाढमालवे ॥ ४२ ॥ ( अनुष्टुववृत्तम् . ) सव्वुक्कसं परवा, अडलं नथिएरिसं, अवकीयं मवत्वं वियंत्तं चैव नोवए ॥ ४३ ॥ सबमेयं, वइस्लामि सङ्घमेयंति नोवए, अणुवीय सव सव्वच्छ, एवं जासेद्य पन्नत्रं ॥ ४४ ॥ सुक्कियं वा सुविक्को, कि किद्यमेव वा, इमं गि इमं मुच्चं, पणियं नोवियागरे ॥ ४५ ॥ अपग्धे वा मदग्धे वा, कएवा विकए वावि, पणिय समुप्यन्ने

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