Book Title: Prakaran Ratna
Author(s): Nagardas Pragjibhai
Publisher: Nagardas Pragjibhai
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२१२] जाइयवं जवर, चउबं पयं जव जवश्य श्व सिलोगो, “नाणमेगग्ग चित्तोय, ग्यिोअ गवइ परं सुयाणिय अहिफित्ता, रयो सुयसमाहिए ॥३॥ चलविहाखलु तवसमाही नंवर तंजहा नो इहलोगध्याए तवमहिछेज्जा, नो परलोगठयाए त. वमहिछेज्जा, नोकित्ति वन्न सद्द सिलोगध्याए तवमहिछेज्जा, नन्नब निज्जरच्याए तवमहिले. ज्जा, चउहं पयं जव जव य व सिलोगो॥
(काव्यम्.) विविह गुण तवोरए निच्चं, नवनिरासए निज्जरहिए, तवसा धुण पुराण पावगं, जुत्तो य सया तव समाहिए ॥४॥ चविहा खनु थायारसमाही जवर तंजहा नोश्हलोगज्याए बायारमहिछेज्जा, नोपर लोगङ्याए थायारमहिद्वेज्जा, नोकित्ति वन्न सद्द सिलोगट्ठयाए थायारमहिद्वेज्जा, नन्नव अरिहंतेहिं देउहिं आयारमहिज्जा , चउबं पयं जवश् न. वश् य इत्य सिलोगो॥

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