Book Title: Prachin Stavanavali Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना सज्जन नर नारिओ! इस असार संसार में अनादि कालसे भवभ्रमण करते हुए जीवको संसारके जन्म मरणादि दुःखोंसे छूटने के व्रत नियम दानानि अनेक उपायोंमें से श्रीजिनेश्वर देवकी भक्ति एक सर्वोत्तम उपाय है, श्रीजिनराजकी भक्तिके अनेक प्रकार हैं, उनमें तीर्थंकर देवके सद्भूत गुणोंका कीर्तन करना यह अत्युत्तम है, क्योंकि प्रभुगुणों में मनकी एकाग्रताही कर्मनिर्जराका खास हेतु है, और प्रभुगुणों में मनकी एकाग्रता जैसी प्रभुगुणोंको गानेसे होती है वैसी अन्यसे नहीं, जिस गायन विद्यासे अज्ञ आदिकभी मंत्रस्तंभितकी तरह मुग्ध बन जाते हैं उसी गायन कलासे श्रीवीतराग देवके गुणोंमें लयलीन हुए भक्त जीव अनेक भवोंके संचित क्लिष्ट कर्म क्षण भरमें नष्ट करदेते हैं, जैसेकि-मयणा सुंदरी, श्री श्रीपाल महाराजा तथा श्री खरतर गच्छ नायक श्रीमद् अभयदेवसरिजी महाराज आदिके कुष्ट रोगादि नष्ट हुए और ऋद्धि, संपत्ति, शासन उन्नति माप्त करी, इतनाही नहीं. बल्के रावण जैसे ने प्रमुगुण गानमें ही तल्लीन होके तीर्थकर नामकर्म बांधा है, इसीलिये माचीन फालके अनेक आचार्य आदि मुनिमहात्माओने स्वपरके हितार्थ अच्छे अच्छे भावपूर्ण स्तवन बनायेहैं, जोकि बहुत छप चुके हैं फिरभी बहुतसे ऐसे है कि जो अभीतक नहीं छपे, वैसे स्तवनोंका संग्रह इस 'स्तवनावली' में किया गया है।Page Navigation
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