Book Title: Prabhu Veer Ki Shraman Parmpara
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 24
________________ / / 18 / / = प्रभुवीर की श्रमण परंपरा महोपाध्याय यशोविजयजी के वचन इस अभ्युदय एवं अविरत रूप से चलने का रहस्य क्या है? स्याद्वाद के गूढ रहस्य-ज्ञाता, तटस्थ विद्वान शिरोमणी, न्यायविशारद महोपाध्याय यशोविजयजी के वचनों से उसका रहस्य पता चलता है। श्री सीमंधर स्वामी भगवान के 350 गाथा के स्तवन की 16वीं ढाल में वे फरमाते हैं'शास्त्र अनुसार जे नवि हठे ताणिये / नीती तपगच्छनी ते भली जाणिये।। जीत दाखे जीहां समय सारू बुधा। नाम ने ठाम कुमते नहि जस मुधा नाम निग्रंथ छे प्रथम एहनु कह्यु। प्रथम अड पाट लगे गुरु गुणे संग्रह्यु। मंत्र कोटी जपी नवम पाटे यदा। तेह कारण थयुं नाम कोटिक तदा / / 19 / / पंदरमें पाटे श्री चंद्रसूरे कर्यु। चंद्रगच्छ नाम निर्मल पणे विस्तषु।। सोलमें पाट वनवास निर्मम मति। नाम वनवासी सामन्तभद्रो यति पाट छत्रीस में सर्वदेवाभिधा। सूरि बड़ गच्छ तिहां नाम श्रावणे सुधा। बड़ तले सूरिपद आपीओ ते वती। वलीय तस बहु गुणे जेह वाध्यो अति / / 21 / / सूरि जगच्चंद्र जग समरस चंद्रमा। जेह गुरु पाटे चउ अधिक चालीसमा।। तेह पाम्यु ‘तपा' नाम बहु तप करी। प्रगट आघाटपुरी विजय कमला वरी __ एह षट् नाम गुण ठाम तप गण-तणा। शुद्ध सद्दहण गुण रयण एहमा घणा। * आघाटपुरी = आयडतीर्थ (उदयपुर-राज.) ( 24 ) / / 20 / / ||22 / /

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