________________ = प्रभुवीर की श्रमण परंपरा 3. श्री माणिभद्रवीर ने आ. श्री विजयदानसूरिजी को स्वप्न में बताया कि 'आपके गच्छ का मैं कुशल-क्षेम करूंगा। आपकी पाट पर 'विजय शाखा स्थापन करना।' (पं. खुशालविजयजी भाषा-पट्टावली सं. 1889 जेठ वद 13, शुक्रवार, सिरोही) हम देख सकते हैं कि इन जैन शासन संरक्षक और हितवादी देव-देवियों का कथन अब तक निरपवाद सच पड़ा है। 23