Book Title: Prabhu Veer Ki Shraman Parmpara
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 27
________________ = प्रभुवीर की श्रमण परंपरा परिशिष्ट-2 चैत्र गच्छ और बड़गच्छ चैत्र गच्छ बड़ गच्छ की ही शाखा थी। चैत्रपुर नगर में महावीर स्वामीजी की धामधूम से प्रतिष्ठा करवाने के कारण धनेश्वरसूरिजी की शिष्य परंपरा चैत्र गच्छीय नाम से कहलाने लगी। धनेश्वरसूरिजी ने 70 दिगंबर साधुओं को प्रतिबोध करके दीक्षा दिलायी थी। चैत्र गच्छीय उपा. देवभद्रगणिजी की गुरु परंपरा एवं आ. जगत्चंद्रसूरिजी की गुरु परंपरा आगे जाकर एक हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि दोनों बड़गच्छ के ही थे। दोनों की गुरु परंपरा निम्नोक्त है। पाट परंपरा नं. आचार्य 35 - आ. श्री उद्योतनसूरिजी 36 - आ. श्री सर्वदेवसूरिजी (बड़ गच्छ नाम करण) 37 - आ. श्री देवसूरिजी / आ. श्री सर्वदेवसूरिजी (द्वितीय) उनके यशोभद्रसूरि आदि 8 शिष्य थे जिनमें 39 - 1. आ. श्री यशोभद्रसूरि, 39 - 8वें आ. श्री धनेश्वरसूरिजी 2. आ. श्री नेमिचंद्रसूरि आदि.. (चैत्र गच्छ इनसे शुरु हुआ) आ. श्री मुनिचंद्रसूरिजी 40 - आ. श्री भुवनचंद्रसूरि जी आ. श्री अजितदेवसूरिजी 41 - उपा. श्री देवभद्रगणिजी आ. सिंहसूरिजी आ. श्री सोमप्रभसूरिजी, आ. श्री मणिरत्नसूरिजी आ. श्री जगत्चंद्रसूरिजी Reora 27

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