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(३) ज्यारे 'सौधर्मेन्द्रे पंच रूप करी' ए पद पूरूं बोली रहे त्यारे जळनो प्रभुने अनिषेक करे. पछी ते ढाळ पूरी थया पडी जगवानने सिंहासनमाथी बहार लश् चोखा पाणीथी न्हवण करावी अंगलूहांत्रण करी चन्दन पूजा करे. पछी आरति मंगल दीवो करवो.
आ विधि सामान्य प्रकारे लखी छे. परंतु ज्यां नामाबडी लखी छे त्यां उत्तम वस्त्रोनो उपयोग करे वा उत्तम उत्तम द्रव्यनो उपयोग शक्ति प्रमाणे करे तो ते उत्तम .
" अथ जैनाचार्य बुद्धिसागर सूरिकृत "
अथ स्नात्रपूजा प्रारंभ:
सर्वातिशये शोजता, प्रभु महावीर जिनेश, शासन नायक जगपति, प्रणमुं हुं विश्वेश. ॥१॥ प्रभु स्नाननी नावना, करतां शान्ति थाय; रोग शोक दूरे टले, स्नात्रपूजा महिमाय. ॥२॥
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