Book Title: Pathik 1998 Vol 38 Ank 01 02
Author(s): Nagjibhai K Bhatti and Other
Publisher: Mansingji Barad Smarak Trust

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org T इस प्रकार की कोरी में सर्वप्रथण लेख लिखने को दो पद्धतियों, वर्तुलाकार तथा पंक्तिबद्ध का प्रयोग किया गया है । प्रागमलजी के लिए मिरजा उपाधि का प्रयोग तथा कोरी का मूल्य बताने का प्रयास इसे पूर्व प्रचलित कोरी से भिन्न बनाना है। बड़ी रकम की अदायगी के लिए अढीइ तथा ५ कोरी के सिक्के ढलवाये गये थे । वैसे तो कोरी ही चांदी की सबसे बड़ी इकाई थी, किन्तु सार्वजनिक उपयोगिता के निर्माण कार्य की बड़ी रकम की अदायगी के लिए इसका प्रचलन किया गया था । ( ४ ) ५ कोरी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धातु : चांदी, तौल : १३, ८७०० ग्रा. आकारः गोल अग्रभाग किन्तु लेख में भूजनगर के पहले ही अरब लिखा है । पृष्ठ भाग मी २ भी कोरी के मूल्य को दर्शाते हुए ५ कोरी लिखा है । वि.सं. १८६५, ढाली गई । इसे 'पांचिया' कहा जाता था । २५ कोरी - - प्रथम प्रकार धातु : सोना, आकार : गोल, तौल : ४.६७५० । २५ कोरी के दो प्रकार उपलब्ध हुए है । अग्रभाग में तीन पक्तियों में फारसी लिपि में लेख के साथ अन्तिम पक्ति में बायीं तरफ तिथि भी है । पृष्ठभाग कुल मिलाकर ४ पक्तियों में चिह्न लेख तथा तिथि का समावेश हुआ है । प्रथम पंक्ति में चिह्न तथा द्वितीय व तृतीय में लेख तथा अन्तिम पंक्ति में तिथि । इस प्रकार के सिक्के १९१९, १९२०, १९२१ में ढाले गये थे । ५० कोरी सिक्के प्रचलित थे । २ १/२ के अग्रभाग के ही समान १/२ कोरी के ही समान है । इसमें ६६, ७०, ७४ और ७५ में ५ कोरी - द्वितीय प्रकार धातु, आकार, तौल माप तथा पुष्ठभाग की दृष्टि से तो ये सिक्के भी उपर्युक्त प्रकार के ही है, मात्र अग्रभाग के लेख में थोड़ा परिवर्तन होने के कारण इसे प्रथम प्रकार से अलग किया जा सकता है । अग्रभाग ४ पंक्तियों में लेख, जिसमें मुल्क मुआज्ज़म क्वीन विक्टोरिया १८७० जरब कछ: भुज अंकित है । यहां उल्लेखनीय है कि पहले सभी सिक्को में सिर्फ 'जरब भूजनगर' ही लिखा होता था इसमें 'कछ' शब्द का प्रयोग नवीन है, जो इसे अन्य सिक्कों से अलग करता है I इस प्रकार की कोरी १९२६, १९२७ में ढाली गई थी। सिक्के के बाहरी किनारे पर किसी भी प्रकार के अलंकरण का अभाव है । धातु : सोना, आकार : गोल, तौल: ९.३५० ग्रा. ५० कोरी के एक ही प्रकार के अग्रभाग - बाह्य वर्तुल को लहरियादार फूलपंक्तियों से युक्त बेल से अलंकृत किया गया है। उसके मध्य में ४ पंक्तियों में फारसी लिपि में अन्य सिक्कों के ही समान लेख है। सिक्के का किनारा महीन रेखाओं से अलंकृत किया गया है । For Private and Personal Use Only पृष्ठभाग में बाह्य वर्तुल में वर्तुलाकार लेख देवनागरी लिपि में, महाराव श्री प्रागमलजी बहादुर महाराजाधिराज मिरजा । मध्य वर्तुल में त्रिशूल, अर्धचन्द्र तथा खड्ग, द्वितीय पंक्ति में मोहोर अर्ध, तृतीय पंक्ति में कोरी ५० जरब और चतुर्थ पंक्ति में कछ भुज १९२३ अंकित है । इस प्रकार की स्वर्ण की ५० कोरी वि.सं. १९२३, ३०, ३१ की प्राप्त हुई है । यन्त्र से ढला हुआ पथिङ • दीपोत्सवांड - १८९७ • ४४

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