________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कच्छ के राव प्रागमलजी २ की कोरी
डॉ. रेनुलाल
दक्षिण पश्चिम में अरब सागर के शान्त ठण्डे जल तथा उत्तर में रेगिस्तान के गर्म रेतीले मैदान को स्पर्श करता हुआ कच्छपाकार प्रदेश अपने आकार के आधार पर कच्छ नाम से अभिहित है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अपने इतिहास को नया मोड देने वाले तथा अद्वितीय स्वतन्त्र सिक्काप्रणाली के कारण यह प्रदेश सम्पूर्ण विश्व में विशिष्ट स्थान रखता है ।
ऐतिहासिक दृष्टि से प्राचीन काल में मौर्य, शक क्षत्रप, गुप्त, मैत्रक, तथा सोलंकी के साथ ही साथ जाडेजा, समा, काठी आदि राजाओं का तथा मध्यकाल में दिल्ली सुल्तानों की सत्ता तथा गुजरात के सुल्तानों का राज्य रहा । इसी समय में समकालीन राज्यों में जाडेजा वंश सबसे प्रमुख वंश था । इस वंश के दसवें वंशज हमीरजी के पुत्रों ने आन्तरिक संघर्षो से घबडाकर कच्छ से अहमदाबाद आकर सुल्तान का आश्रय लिया। कच्छ की अनुश्रुति अनुसार खेंगारजी द्वारा अपने हाथों से सिंह से बचाये जाने पर गुजरात के सुल्तान ने प्रसन्न होकर उन्हे मोरबी परगना दिया और यहीं से कच्छ की स्वतन्त्र सत्ता का प्रारंभ हुआ । इसी के कुछ समय बाद मारमलजी रावल द्वारा लाए गए नजराने से प्रसन्न होकर जहांगीर ने कच्छ में सिक्के बनाने और कच्छ को अपने स्वतन्त्र सिक्के चलाने की अनुमति प्रदान की । खेंगारजी के बाद कच्छ के जाडेजा वंश में १८ राजाओं के नाम मिलते है, जिन्होनें भारत के स्वतन्त्र होने तक अर्थात् ई सन् १९४८ तक कच्छ मे राज्य किया ।
कच्छ के जाडेजा वंश के इतिहास से स्पष्ट है कि इन्होनें अपनी सत्ता को कायम रखने के प्रयास में सदैव केन्द्र की सत्ता के साथ ताल-मेल बनाए रखा। इसी क्रम में प्रागमलजी २ कच्छ के प्रथम शासक थे जिन्होनें महारानी विक्टोरिया को आभार प्रकट करतें हुए अपने शासन के प्रथम वर्ष अर्थात् ई. सन् १८६० से ही अद्वितीय प्रकार के सिक्के बनवाना प्रारंभ किया । त्रांबियो, दोकड़ो, ११/२ दोकड़ो, ३ दोकड़ो, १/२ कोरी, कोरी, २१ / २ कोरी, ५, २५, ५० और १०० कोरी आदि इनके द्वारा प्रचलित प्रमुख सिक्के थे। त्रांबियो, दोकड़ो, ११ / २ दोकड़ो और ३ दोकडो तांबे के सिक्के थे जबकि कोरी चांदी के सिक्को का ही दूसरा नाम था । कच्छ की प्रचलित मुद्रा में कोरी सबसे बड़ी इकाई थी । कच्छ को सर्वप्रथम कोरी 'जहांगीर कोरी' कहलाती है, जिसका चलन कच्छ के राव भारमलजी १ ने ई.सन् १६१७ में किया था। ये कोरी अहमदाबाद की टंकशाला मे टंकित हुई थी ।
:
राव प्रागमलजी ने पूर्व प्रचलित कोरी में कई नए परिवर्तनों के साथ कई नए प्रकार भी प्रचलित कराए, जिनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं
(१) १/२ कोरी
मुल्क मुआज्ज़म
धातु : चांदी, आकार : गोल, तौल : २.३५०० ग्रा. अग्रभाग : इन सिक्के के अग्रभाग में ५ पंक्तियों में अरबी फारसी लिपि में लेख है
પથિક • दीपोत्सवां६-१८८७४२
For Private and Personal Use Only