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(२) कोरी
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शीविक्टोरिया
भुजनगर
जरब १८६२
पृष्ठभाग में भी ४ पंक्तियों में देवनागरी लिपि में लेख है
इस प्रकार की १/२ कोरी का केवल एक ही प्रकार देखने को मिलता है ।
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महाराऊ श्री प्रागमलजी १९२०.
धातु : चांदी, आकार : गोल, तौल: ४,७००० ग्रा. इस वर्ग की कोरी के दो प्रकार मिलते है। प्रथम आकार - अग्रभाग में १/२ कोरी के ही समान ५ पंक्तियों में अरबी-फारसी लिपि में लेख
पृष्ठभाग में सबसे ऊपरी पंक्ति में त्रिशूल, अर्धचन्द्र तथा खड्ग चिह्न | उसके बाद की दो पंक्तियों में महाराव श्री प्रागमलजी तथा अन्तिम पंक्ति में १८२० लिखा है । इस प्रकार की कोरी ई. सन् १८६२ में ढाली गई थी ।
द्वितीय प्रकार - ई. सन् १८४२ और १८६३ वर्षों में ढाले गई सिक्के द्वितीय प्रकार की श्रेणी में आते हैं । आकार प्रकार, तौल तथा अग्रभाग तो प्रथम प्रकार की ही भांति है पृष्ठभाग में प्रथम पंक्ति में तीन चिह्नों के स्थान पर एक मात्र अर्धचन्द्र का ही अंकन है । देवनागरी लिपि में महाराज प्रागमलजी बहादुर लिखा है । उसके दाहिनी तरफ ८ भंखुडियों वाला फूल बना है तथा सबसे नीचे वि.सं. की लिपि अंकित है । कोरी के ये दोनो ही प्रकार बहुत प्रचलित थै। दूसरे प्रकार की कोरी मैं प्रागमलजी के लिए महाराज के साथ ही साथ बहादुर उपाधि का प्रयोग हुआ है, जो उल्लेखनीय है । वि.सं. १९१८, १९, २० और २१ की कोरी प्रकाश में आई है। कोरी का प्रयोग केवल आन्तरिक व्यापार के लिए होता था । रुपयों और कोरी के बीच का अनुपात भी कभी एक जैसा नहीं होता था ।
सोने की कोरी
प्रागमलजी द्वारा प्रचलित सोने की कोरी अत्यन्त दुर्लभ है। इसके अग्रभाग में अन्य कोरी की हीं भांति अरबी फारसी लिपि में ५ पंक्तियों में लेख तथा तिथि है । पृष्ठभाग में भी त्रिशूल, अर्धचन्द्र और खड्ग का अंकन है । नीचे की ३ पंक्तियों में महाराउ श्री प्रागमलजी १९२७ लिखा है ।
(३) २१ / २ कोरी
धातु : चांदी, आकार : गोल, तौल : ६ ९३५० ग्रा. अग्रभाग मध्य वर्तुल में ४ पंक्तियों में अरब - फारसी लिपि में १/२ कोरी के ही समान लेख लिखा है। सिक्के का बाह्य वर्तुल वानस्पतिक बेल से अलंकृत है तथा किनारे का अलंकरण भी बिन्दुओं से किया गया है ।
पृष्ठभाग में भी मध्य वर्तुल में त्रिशूल, अर्धचन्द्र तथा खड्ग अंकित है । द्वितीय पंक्ति में कोरी अढी, तृतीय में जरब कच्छ भूज तथा चतुर्त पंक्ति में १९३१ लिखा है । बाह्य वर्तुल मे देवनागरी लिपिमें महाराजाधिराज मिरजा महाराउश्री प्रागमलजी बहादुर लेख है। सिक्के का बाह्य किनारा बिन्दुओं से अलंकृत है । इस प्रकार की कोरी १९३१ और ३२ में ही ढाली गयी थी ।
पथि • छीपोत्सवांड - १८९७ • ४३
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