Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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अगर कोई फेरफार करी शकतो नथी. आपीए ते जो लई शकतो नथी तो न आपवाथी नुकशान करशे ए पण केम मनाय ? कारण के जे कांई लेइ शके नहि, अगर कांई फेरफार करी शके नहि ते सारुं अगर बुरुं पण शुं करी शकनार ? कांईज नहीं; माटे नाहक निचारा निरपराधी गरीब प्राणिने शा माटे मारवुं जोइए ? ते गरीब प्राणि पण राजानी प्रजाज छे. अने तेनुं पण राजाए बने तेटलुं रक्षण करवुंज जोइए. अने एवा निरर्थक पशु वध करवा नज जोइए. जो ते देवनी आगळ पशुने मूकतां ते पशुने ते ले तो भले वर्षो वर्ष आपवुं. पण जो नज ले तो पछीथी तेने आपकुंज नहीं. अनेकदाच जो आप तो तेने बदले बीजा पदार्थों ने कहेल छे ते आपवा, अने पाठ करवो ए उत्तम छे. तेथी हवा सुधरे छे, अने रोगादि उपद्रव हवा सुधरवाथी थता नयी. पशु वधथी कांई विशेष नथी. वळी बीजा राज्योमां तें वध नथी थता तो ते राज्योंमां नुकशान थत्रु जोइए, पण ए कांई जणातुं नथी. त्यारे बजाए पण शुं काम नाहक एम कर जोइए ? आपणने जेम जीववानी होंश छे तथा ममत्व छे ते प्रमाणे ते प्राणियोने पण छे माटे नाहक निरपराधी प्राणियोने मारवा ए अन्याय छे.
हवे कदापिने ओम कहीए के शब्द देखातो नथी पण श्रवणेंद्रियजन्य प्रत्यक्ष छे, तेम से देवकार्य थाय छे. ते कार्य अनुभवजन्य प्रत्यक्ष छे, जेम वायु देखातो नथी षण स्पर्शथी जणाय छे के वायु छे; तेम कार्यों थाय छे, अने ते कार्यो अनुभववामां आवे छे, ते परथी से देव छे ओम सिद्ध थाय छे, तोपण ते अशुभ कार्य करनार छे तेम शुभकार्योंनो अनुभव थाय छे तेथी शुभकार्योनो कर्त्ता पण कोई छे अने शुभ कार्य करनार प्रवळ छे अशुभ कार्य करनार निर्बळ छे कारण के दरेक वखते शुभकार्योवाळानो पक्ष ईश्वरे कर्यो छे अने अशुभवाळानो पक्ष कर्यो नथी. माटे अशुभ कार्यों करनार निर्बळ छे तेनोज केवळ पक्ष स्वीकारवामां नुकशान छे माटे बन्ने राजी रहे तेम करवुं; अने ते करवा माटे पशु वधने बदलें बीजं कहेल छे ते करवुं. वळी तें देव खातो नथी अॅटले उपयोगमां नथी लेतो एम कहेवाय नहि; कारण के सुगंधी पदार्थ होय तो तेनी सुगंधी लेवाथी पण तृप्ति थाय छे; तेम रूप जोवाथी अने शब्द सांभळवाथी पण तृप्ति थाय छे, तो ते रूपथी ग्रहण करे. अगर रूपथी ग्रहण करे तो तेथी कांई पदार्थ ओछो न थाय अगर फेरफार न थाय तेथी ते उपयोगमां न लीधुं एम न कहेवाय. तेनो खुलासो एम छे के जे पशुवध छे तेमां एवो सरस गंध नथी; तथा पशुवधमां ते पशुनुं माधुं उडावी देवाथी बहु रूपवान देखाय एम पण नथी. माधुं गया पछी विकराळ स्वरूप देखाय छे तथा ते वखतें पग शरीर विगेरे तरफडतां होय नें ध्रुजतां होय छे तथी राजी थवा जेतुं नथी. तेम आनंद पामवा जेवुं पण नथी. वळी ए शरीर पशुनां रजवायन बनेल छे ते रज वीर्य मळ छे- अने शरीर केबुं छे के चहाय तेवो सारो पदार्थ शरीरनी अंदर गळावाटे गयो के तेने खराब करी नांखे छे. अवुं शरीर छे तो ते मळमां सुगंधी क्यांथी ज होय, पण केवळ दुर्गंध अने गलीची छे. कदाच एम कहो के सेवा देवोने ते गमे छे तो ते पण बने नहीं कारणके कोई गंदो अने अत्यंत गलीची करनार होय तेना आगळ बीजो जो गलीचीपणुं करे
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