Book Title: Paryushana Kalpsutram
Author(s): Kesharmuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 428
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobefith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandar 8XOXOXOXOXOXOXOXOXOXOX8 लोगपाल ! सुण सम्मं । पगईइ रंजणेणं, राया सेसो अ नामेणं ॥ २६ ॥ पालिज्जइ साहुजणो, दंसणिवग्गो वि सेसओ जेण । सो दूमिओ अ नरवर !, दुहदाई दारुणं देइ ॥२७॥ [यदुक्तं-] "देवताप्रतिमाभङ्गे, साधूनां च विनाशने । देशभङ्गं विजानीया-दुर्भिक्षडमराशिवैः॥ २८॥" मइलिजा विमलकुलं, लज्जिजइ जेण लोअमज्झम्मि । कंठगयजीविएहि वि, तं न कुलीणेहिं कायवं ॥ २९ ॥ इअ सोउ निवो रुट्टो, भणइ अरे!! जाह मंदिरं निययं । सिक्खेवह निअताए, इअ भणि ते वि वारेइ ।। ३०॥ अह पालिजइ सम्म, संजममिअIA | सिक्खिऊण निअसीसा । कयनवसूरिसमेआ, विहारिआ तेण अन्नत्थ ॥ ३१ ॥ अह चिंतइ सूरिवरो, जाणेऽहं जामि तायपासम्मि । | महई लज्जा हिअए, सा गंतुं कहवि नो देइ ॥ ३२ ॥ जे पुण पिसुणा ते व-चिअब मह कब्बडं करिस्संति । तह गहिअवओ जो मुत्तुं, सरस्सइं आगओ स भडो ॥ ३३ ॥ तो पिउपासि न जामि-त्ति निच्छिऊणं पुणो वि चिंतेइ । विजा(बल)लवं तु जेसि, पराभवो होइ न हु तेसिं ॥ ३४ ॥ विज्जाइ हुंति मित्ता, जिप्पंति अ सत्तुणो वि विजाए । विजालवो वि जाणं, नमंति सचे वि नर ताणं ॥ ३५ ॥ चोरेहिं जो न धिप्पड़, अग्घेइ गुणवंतयाण गेहेसु । सा विजा मह विउला, तेण विदेसो वि निअदेसो॥३६॥ अह सूरी सगकूले, वच्चाइ इगसाहिणो समीवम्मि । भन्नइ साहणुसाही, राया जहिं साहिणो सेसा ॥३७॥ सूरी सहाइ वच्चइ, बुल्लइ तं जं सुहाइ सबस्स । एवं | वयणरसेणं, रंजइ रायप्पमुहलोअं ॥ ३८ ॥ भणइ निवो धन्नोऽहं, जं पत्तो सुपुरिसो तुम इत्थ । सोहइ तयऽम्ह रज्जं, मग्गसु तं जेण तुह कजं ॥ ३९ ॥ अह जंपइ सूरिवरो, तुज्झ ममत्तेण सबमवि लद्धं । मग्गिस्समवसरेऽहं, छुहाइ अन्नं पि पीइकरं ॥४०॥ अह पेसह | एअछुरीई, ससिरमीअ आगयम्मि पहुलेहे । विच्छायमुहो साही, पुट्ठो गुरुणा कहइ सवं ॥४१॥ अह भणइ गुरू नरवर !, |किज्जइ मंतो वि कोवि अप्पणए । कणगाइ दाणओ तह, किजइ जह देव ! जीविजइ ॥ ४२ ॥ सो भणइ निसुण सुपुरिस!, जाणासि BXOXOXOXOXXX For Private And Personal Use Only

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