Book Title: Paryushana Kalpsutram
Author(s): Kesharmuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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पर्युषणा० तुम न अम्ह निवचरिअं। विसमो स भूमिपालो, रुट्टो पुण जेसि तिह कालो ॥ ४३ ॥ गिण्हेइ जं गहं तं, कह वि न मिल्हेइ गुरुअ- कालका. कल्पार्थ-Xगबंधो । सामत्थेणं सीमा-लए अ दमेइ गंजेई अग्गं जे ॥४४॥ अम्ह समनिवइलक्खा, नमंति एअस्स विहिअनिअरक्खा । न भिडइ कथायां बोधिनी रणम्मि कोई, भंजइ नामेण भडकोडी ॥ ४५ ॥ इत्थ न संधि न (१) दिट्ठो, कोवि उवाओ वि विजए नेअ । कजं केणवि न सरइ, विणु रिप्रेरणय
सिरदाणं मरइ सवं ॥ ४६ ॥ अह सूरिवरो जंपइ, मरणाणुमयं न देमु तुह अम्हे । अबला वि देव ! सुहडा, अप्पंति न मग्गिए सत्थे षण्णवति॥२०९॥
॥४७॥ तो सुअणु! कहसु कोई, सिरं पि किमु मग्गिअं पि अप्पेइ ? । सुहडकुलेसुं होई, उवहासो अप्पहाणी अ॥ ४८ ॥ चिंतसुतं | | निव ! सिरु रु-कडं तु रजं पुणऽस्थि उद्धारे । चउरीई दंतपेसो, का पीई ? ताण मिहुणाणं ॥४९॥ मग्गंति नेहरहिआ, सीसं पि हु अज xमालवेशोप जे अ निल्लज्जा । दाहिइ कह ते रजं ?, नज्जइ नीचाइ पासाओ ॥५०॥ चल्ली न सोहणेसा, अज तुहं जं सुआण तं कल्ले । तम्हा रक्खसु प्रयाणम् जीअं, जीवंतो जेण सुहभागी ॥ ५१ ॥ जामो मालवदेसं, तेडह पणनवइसाहिणो सेसे । अह गुरुगिराइ तेणं, हकारिअ मेलिआ सवे ॥५२॥ अह तेसु चलंतेसुं, गिरिणो धुजंति थरहरइ धरणी । सेसो पकंपिओ बहु-धूलीहिं झंपिओ सूरो ॥५३॥ सीसऽत्थमागया जे, तत्थ भडा उब्भडा निवाएसा । ते तह तओ पलाणा, जह दिवा नेव दिट्ठीए ॥ ५४ ॥ उत्तरिउं सिंधुनई, कमेण सोरदुमंडले पत्ता । ते ढंकगिरिसमीवे, ठिआ दिणे कइवि मंतवसा ॥ ५५ ॥ अह पाउसम्मि पत्ते, गज्जतो जलहरो गयणमग्गे । सोहइ विज्जलयाए, छुरीइ किर सरमई एसो ॥ ५६ ॥ बप्पीहा पिअपिअसरि, भणंति नचंति मोरसंघाया । कुरलंति सारसगणा, रडंति तह दुहुरा बाढं ॥ ५७ ॥ ससि- al॥२०९॥ सूरपारिआसो (3), आरोहंति अ तरुसु भुअगा वि । सवत्थ जलप्पवाहा, वहंति पंकाउला पुहवी ॥५८॥ अह अत्थखए राया, विन्नत्तो परिअरेण सवेण । तेण वि सूरी जह सामी!, संकडं संगयं विअडं ॥५९॥ जेसिं बलेण चलिआ, अम्हे परमंडलक्कमणसुरा । ते सखे पडिकूला,
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