Book Title: Paryushana Kalpsutram
Author(s): Kesharmuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 427
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobasrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्युषणा कल्पार्थबोधिनी ॥२०८॥ हा!! पवयणनाह ! हा!! गुणनिहाण ! । इमिणा में हीरति, पावेणं वीर! रक्ख त्ति ॥ १२॥ अह सो कुग्गहगहिओ, अंतेउरसंग कालका कुणइ समणिं । तं नत्थि धुवमकिचं, जं कामंधा न हु कुणंति ॥ १३ ।। कथायां यतः-"न पश्यति हि जात्यन्धः, कामान्धो नैव पश्यति । न पश्यति मदोन्मत्तो, दोषमर्थी न पश्यति ॥१४॥” । गई मिल्लगंतूणं गुरुणा सो, वुत्तो महराय ! मुंच समणिमिमं । जेणं तवोवणाई, कयनिवरक्खाई भणिआई॥१५॥ तं चिअ करेसि एवं, पलीवणं|* कृतहरणे |पाणिआउ धुवमेअं । धाडी अ वाहराए, अहवा सरणाउ देव! भयं ॥ १६ ॥ तह संघेण वि भणिओ, जुत्तं तुम्हारिसाण निव ! ने। सरखतीविउले वि हु जलपूरे, जलही लंघइ न सीमं जं॥ १७ ॥ तह तह नीअत्तेणं, उवहासं सो करेइ संघस्स । जं दुद्धपाइओ वि हु, विसमविसं विलापादय मुंचई भुअगो॥१८॥ दुद्धधोओ वि हु काओ, जह कण्हत्तं न मुंचई कहवि । तह नीओ नीअत्तं, न मुअइ उच्चत्तपत्तो वि ॥ १९॥ यतः-"दूधइ सींचिउ लिंबडउ, थाणउं कि गुलेण । तोइ न छंडइ कडुअपणुं, जातिहिं तणई गुणेण ॥ २०॥" अवमन्निअनिअसंघ, नाउ पइन्नं इमं कुणइ सूरी । उम्मूले जइ न इमं, पडिणीयगई तओ जामि ॥ २१ ॥ यतः-"जो पवयणपडिणीए, संते विरिअम्मि नो निवारिज्जा । सो पारंचिअपत्तो, परिभमइ अणंतसंसारं ॥ २२॥ देवगुरुसंघकजे, चुन्निजा चक्कपट्टिसिन्नपि । कुविओ मुणी महप्पा, पुलायलद्धीइ संपन्नो ॥ २३ ॥" ॥२०८॥ जइ कहवि इमो बुज्झइ, तोऽहमुवायं रएमि निरवायं । इअ चिंतिअ करुणाए, सत्तो वि गुरू करइ एवं ॥२४॥ जइ निवइ गद्दहिल्लो, अहं च रोरो तओ अ किं ? लोआ!। इञ्चाइ जंपिरो पुरि, भमेइ गहिलुब हा!! सूरी ॥२५॥ अह मंतीहि वि भणिओ, निव! पंचम-1X For Private And Personal Use Only

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