Book Title: Paryushana Kalpsutram
Author(s): Kesharmuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 433
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobasrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्युषणा अह पच्छायावपरा, तेणं ते पेसिआ गुरुसगासे । जणपुट्ठा बिंति पहे, एए कालयगुरू जंति ॥ १०७ ॥ आगच्छंतं सूरिं, सोउं तो कालकाचाकल्पार्थ सागरो गओऽभिमुहो। पुच्छइ सीसे मिलिए, भद्दा ! मह कहह कत्थ गुरू ? ॥ १०८ ॥ ते बिति इत्थ गुरुणो, पुर्वि पि समागया न all | र्यकथायां बोधिनी IXI किं मुणसि ? । स भणइ इकं थविरं, मुत्तुं इह कोवि नो पत्तो ।। १०९॥ हसिऊण तेहिं भणिअं, सागर! संघाडिओऽसि अम्हाणं । XI शकाग्रे ॥२११॥x अम्हेणं हि अवन्नाया, तए न नायावि निअगुरुणो ॥ ११०॥ अह लजिआ गुरुं ते, वंदित्ता सुविणएण खामति । वेलुअपत्थयओ ते, निगोद बोहिअ सूरी भणइ एवं ॥१११॥ मा वहउ कोइ गवं, इत्थ जए पंडिओ अहं चेव । आसबन्नुमयाओ, तरतमजोगेण मइविहवा ॥११२॥ व्याख्यानं X भिक्खागएसु साहुसु, अन्नदिणे दिअवरेण वुड्डेणं । पुट्ठो कालयसूरी, निओयजीवे इअ कहेइ ॥ ११३ ॥ “गोला य असंखिज्जा, असंखनिगोउ हवइ गोलो । इक्किक्कम्मि निगोए, अणंतजीवा मुणेअवा ॥११४॥" तेण पुणोऽणसणत्थं, निअमाउं पुच्छिओ भणइ सूरी । अयरदुगाऊ सक्को-ऽसि तं दिआ ! मं पवंचेसि ? ॥११५ ॥ इअ सोउं हरी| alपञ्च-क्खो थुणिअ भणइ मई अज । सीमंधरपहु पुट्ठो, कोवि निगोए मुणइ ? भरहे ॥ ११६ ॥ तत्थ तुम अप्पसमो, वुत्तो पहुणा तहित्थ Xतित्थदुगं। भणि तु जंगमं तं, विमलगिरी थावरं चेव ।।११७।। इअ भणिऊण सुरिंदो, जंतो वुत्तो गुरूहि ता चिट्ठ। जा इंति मुणी स भणइ, गच्छिस्सं मुणिनिआणभया ॥ ११८ ॥ अन्नत्तो वसहि मुहं, काउं सक्को गओ सठाणम्मि । तं वुत्तंतं मुणिउं, मुणिणो वि सुसंजमा जाया ॥ ११९ ॥ इअ बोहिअ बहुनरा, दिवं गया गुरुगुणा जुगप्पवरा । सिरिकालगसूरिवरा, हवंतु भवाण भद्दकरा ।। १२०॥ ॥ इति श्रीकालकाचार्यकथा ॥ 2 2 - 2 --- - XOXOXOXOXOXOXOXOXOXOXOX For Private And Personal Use Only

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