Book Title: Paryushana Kalpsutram
Author(s): Kesharmuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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अवि चलइ मेरुचूला, सूरो वा उग्गमिज अवराए । न य पंचमीइ रयणिं, पज्जोसवणा अइक्कमइ ॥ ९२ ॥ तो हवउ चउत्थीए, al निवकहिए गुरु भणइ घडइ एवं । जं वुत्तमंतरा वि अ, कप्पइ साहूण पज्जुसणा ॥९३॥ तो संघाणुमएणं, सुआणुसारा चउत्थि पजुसणा।
ठाविध कालगगुरुणा, रन्ना वि महुच्छवो विहिओ ॥ ९४ ॥ ___ उक्तं च सूत्रे-"अवलंबिऊण कर्ज, जं किंचि समायरंति गीअत्था । थोवावराह बहुगुण, सबसि तं पमाणं ति ॥ ९५॥" | all उजेणीए कइआ, निअसीसे चोअए गुरू एवं । वच्छा! पमायसत्तुं, मा सेवह दुक्खलक्खकरं ॥ ९६ ॥ चउदसपुत्वी आहा-रगा य
मणनाणिवीअरागा य । हुंति पमायपरवसा, तयणंतरमेव चउगइआ॥९७॥ इअ चोइआ वि जा ते, तुरंति गलिगद्दहत्व नो कह वि। तो सो गुरू विचिंतइ, चत्तवा धुवमिमे सीसा ॥ ९८ ॥ [यतः-] "छदेण गओ छंदेण, आगओ अ चिट्ठइ अ छंदेण । छंदेण वट्टमाणो, सीसो छंदेण मुत्तबो॥९९॥"
तो सूरी रयणीए, पेसिज्जा चोइऊण सीसे'ति । सिज्जायरस्स कहिउं, सुवण्णभूमि गओ कमसो॥१०॥निअसीससीससागरदत्तसमीवे स ठाइ अह तेण । पुट्ठो अजो! तुमए, किं दिहा? कालगायरिया ॥१०॥ स भणइ बाद पुण सो, पुच्छइ मह केरिसं तु वक्खाणं । साह वरं अह जंपइ, पुच्छसु मं किंपि विसमं तं ॥ १०२ ॥ स कहइ अणिच्चयं मह-पुरो परूवेसु अह भणइ सो अ। सबमणिचं भुवणे, इकं धम्मं विमुत्तूणं ॥ १०३ ॥ गुरु भणइ नत्थि धम्मो, पञ्चक्खपमाणअविसयत्तेणं । सोउमिच्चाइतकं, स विम्हिओ इअ दिणे जंति ॥ १०४॥ [इतश्च-] अह ते गोसे सीसा, सूरिमदहूण आउला जाया । गुरुसुद्धिं पुच्छंता, तरएणं चोइआ एवं ॥ १०५॥
"सिआ हु सीसेण गिरिं पि भिंदे, सिआ हु सीहो कुविओ न भक्खे।" "सिआन भिंदिज व सत्तिअग्गं, नयावि मुक्खो गुरुहीलणाए ॥१०६॥"
पर्यु.क. ३६
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