Book Title: Paryushana Kalpsutram
Author(s): Kesharmuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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पर्युषणा० कल्पार्थबोधिनी
॥२१॥
पत्तो रुद्धो मिसं तेहिं ।। ७७ ॥ तेणऽहमेण कसिण-ट्ठमीइ सुमरिअसमागयं विजं । दु९ कुटे सुन्ने, रासहिरूवं भणइ सूरी ।। ७८ ॥ | कालका जो रिउसिन्ने सई, इमिइ तिरिओ नरो व निसुणइ । रुहिरं मुहे वमंतो, पडेइ पुहविं स तुरिअं पि ॥ ७९ ॥ तो ऊसारिअ सबलं, दुको
कथायां समट्ठसयसहवेहिभडा। अकयसरमिमीइ मुह, भरंतु बाणेहिं कुसलकए ॥ ८०॥ तेहिं तहा पडिहया, निवम्मि काउं सलत्तनीइदुगं । गईभीविद्या |विज्जा गयाऽह तेहि य, निग्गहिओ गद्दहिल्लनिवो ॥ ८१ ॥ सूरी जप्पासि ठिओ, आसी सोऽवंतिसामिओ सेसा । तस्सेवगा य जाया, निहत्य XIतओ पउत्तो य सगवंसो ॥ ८२ ॥ पुण संजमठिअसरसइ-समणिसमेओ गुरू सगच्छजुओ। बोहइ बहुविहलोअं, विहरइ उजुअवि- शाखिभिः शहारेण ॥ ८३ ॥ कालगसूरिचरितं, तिथुन्नइकारगं इमं भणिों । चउत्थीए पजुसणा, जह जाया तह भणिस्सामि ।। ८४ ॥ बलमित्त- कृतो गई
भाणुमित्ता, आसि अवंतीइ (भरुअच्छपुरम्मि) राय-जुवराया। निअभाणिजत्ति तया, तत्थ गओ कालगायरिओ ॥८५॥ तेसिं सोमिल्लनिग्रहः | भाणिजं, बलभाणुं भाणुसिरिसुअं तइआ। दिक्खइ विणो वि पुच्छं, विमणा ते तेण संजाया ॥ ८६ ॥ तह धम्मखिसिरं सो, निजि-IAचतुर्थीपर्युणइ पुरोहिअं तु गंगधरं । स दिओ गुरुगमणऽत्थं, कवडेणं भणइ इअ निवई ॥ ८७ ॥ देव ! इमे जहिं गुरुणो, भमंति भमिरंति तत्थ *षणाप्रवृत्तिपुरलोए । गुरुचलणकमणेणं, होइ अवन्ना असुहहेऊ ॥ ८८ ॥ संकाइ तेहिं तो पुरि, अणेसणा कारिआ गुरुगमऽत्थं । तं नाउ पइट्ठाणे, वृत्तञ्च गुरू गओ ठाइ चउमासं ॥८९॥ पज्जोसवणासमए, सूरी निवसालवाहणेणुत्तो। पहु ! इह मं विणु न कुणइ, इंदमहं पंचमीइ जणो ॥९॥
छट्ठीइ तओ कीरउ, पवं मह होइ जह जिणऽच्चाई । भणइ गुरू निव! न घडइ, जिणागमे जेण इअ वुत्तं ॥ ९१ ॥ 2 "ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पजोसवेइ, al[xx अंतरा विय से कप्पइ, नो से कप्पइ तं रयणि उवायणावित्तए" इति]
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