Book Title: Paryushana Kalpsutram
Author(s): Kesharmuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 430
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobesirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ छट्ठस्स पारणे सा प्र.) सा अदसणं पत्ता गया कमसो ॥ ६८ । @xoxoxoxoxoxoxoxokakakaka पंचाणवई निवा जाया ।। ६०॥ साहिजाऽवसरे, गासं मग्गंति अम्ह सो नत्थि । गमिहिंति तेण एए, ठाहिइ इकं तु अम्हबलं ॥६१॥ चिंवइ सूरी पुरिसो, सूरो वीरो अ ताव धीमंतो । जाव समिद्धिसमिद्धो, तणतुल्लो रिद्धिपरिहीणो ॥ ६२ ॥ अह सूरि रयणिमज्झे, गयणे | नारिं निएइ नवरूवं । सा भणइ गुरुं मुणिवर !, दुक्खं मा धरसु निअहिअए ॥ ६३ ॥ सासणदेवी अयं, साहिजत्थं समागया तुज्झ । सीआ-सुलसासरिसं, सीलेणं सरसई जाण ॥ ६४ ॥ सरसइसीलाउ इमे, तुह पिट्ठीए निवाइणो लग्गा । तस्सीलप्पभावेण, विजयपत्तं चेव तुह होहि ॥६५॥ छहस्स पारणे सा, आयाम पइदिणं करेमाणी । देवं तु वीअरायं, तुम गुरुं नेव मिल्हेइ ॥६६॥ चुण्णं सम| प्पिअणं, करकमले (इच्चाइ जंपिऊणं, सुपसन्ना इति प्र०) सा अदसणं पत्ता । विजुजोउच्च खणं, देवाणं दसणं जेण ॥ ६७ ॥ तच्चु(अह चु)ण्णवससुवण्णी-कयइट्टसमूहदाणओ गुरुणा । सरयम्मि चालिआ ते, मालवसंधिं गया कमसो ॥ ६८॥ दूअमह पेसइ गुरू, अज वि नरनाह ! सरसई मुंच । अइताणि हि तुट्टइ, फुटइ जं देव! अइभरिअं॥ ६९ ॥ अन्नायपवन्नाणं, अब्भुदओ निच्छएण न हु होइ । विसमविसभक्खयाणं, जीअं किं कहवि निव! दिलु ? ॥ ७० ॥ जइ रावणो वि पत्तो, पंचत्तं परकलत्तवंछाए। ता समणिसमीहाए, कह न तं होहिई ? तुज्झ ॥ ७१ ॥ अह दप्पंधो राया, जंपइ भो दूअ ! किं बहुँ भणसि ? । पोरिसमिमस्स हुजा, जइ तो भिक्खाइ न भमिज्जा ॥ ७२ ॥ मग्गिजते सीसे, जे नहा संपर्य इहं पत्ता । काऊण मुंडमेलं, ताण भए को णु बीहेइ ? ॥ ७३ ॥ सूरस्स तिमिरनिवहा, गरुडस्स व सप्पसंचया विसमा । काउं किंपि न सका, जह तह मह दू! मुणि सुहडा ॥ ७४ ॥ अह दूओ रोसेणं, भणइ अ सारं सुणेसु मह क्यणं । जइ होसि तरू स गओ, गओ तुम जइ स सीहो । ७५ ॥ जइ तं हरी स सरभो, सरभो तं जइ स होइ गुरुमेहो । किं बहुभणिएण ? जओ, तुह अंतकरो व सो सूरी ॥ ४६॥ इअ भणिअ गए दूए, चलिओ मालवनिवो य तयभिमुई। रणभग्गो उज्जेणि, For Private And Personal Use Only

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