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राजा अश्वसेन के महल में सौधर्म इन्द्र की इन्द्राणी प्रसूतिगृह मेंगई अहा! हा! हा! आज मैं निहाल हो गई। चलू,बालक को ले चलं अपने पति को । सौंपदं, और फिर चलें पांइक शिलापर बालक का जन्माभिषेक करने के लिए। परन्तु यदि बालक को उठाया तो माता को कष्ट होगा। अतः इतनी देर के लिए माता को निद्रा में सुला दूं और एक मायामई बालक को उनके निकट लिटाकर भगवान बालक को उठा लू ।
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