Book Title: Parshvanath
Author(s): 
Publisher: Unknown
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमठ की बन आई। उस दराचारी ने उसका सतीत्वही लूट लिया। ... ... ... ... जबराजा | मंत्रीजी मैंने सुना है कि तुम्हारे बड़े भाई राजन! वह मेरे बड़े भाई हैं| भूल हो गई, अरविन्द | ने तुम्हारी पत्नी के साथ...अब क्या दंडहोगी उनसे । कृपया उन्हें क्षमा कर युद्ध सेल दिया जाये उस पापी को? दीजियेगा महाराज..... तब...... यह कैसेहोसकता है मंत्री 'जी।इतनाबड़ा अपराध और दंड न दिया जाये| इस अपराध के लिए जो आज्ञा मृत्युदंड होना चाहिए,परन्तु आपके महाराज! कहने के कारण मैं आज्ञा करताहू कि उसका काला मुंह करके गधेयर बैठाकर देश से बाहर निकाल दिया जावे। कमठ को देश निकाला देदिया गया.... लोगों ने गधे पर चढा कर कालामुंह करके नगर के बाहर तक विदा किया... वहांसेअपमानितकमठ भताचल पर्वत पर पहुंच गया जहां जटाधारी शरीरपर राखळगाये,चिमटा लिए चारों ओर अग्नि जळाये एक लापसीबैठा था........ महात्मन! मुझे भी वत्स! जैसी अपना चेला बना तुम्हारी लीजियेगा। इच्छा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमठ तापसी के आश्रम में रहने लगा। एक दिन वह दोनों हाथों पर एकशिला उठाये तपस्या कर रहा था कि... भैया! मुझे क्षमा कर दोना। मैंने तुझे क्षमा करदूं? दुष्ट कहींका,तेरे ही कारण तो मुझे घोर अपमान) राजा की बहुत समझाया परन्तु सहना पड़ा अबतूकहा जायेगा मुझसे बचकर...... वह माने ही नहीं। मैं तुम्हें देखने को बहुत बेचैन था बहुत दंढा। अबमिले हो । मुझे क्षमा करो... भैया क्षमा करो.... और कमठ ने वहशिला अपने छोटे भाई के मस्तक पर पटक दी। खून की धाराबहने लगी और मरुभूति वही मर गया....... ... ... ... मरुभूति मर करसल्लकी नाम के बन में और उधर राजा अरविन्द गढ की छत पर खड़े थे। वज्रघोष नाम का हाथीहुआ औरकमठ तापसी मरकर उसीबन में सर्प बना... ... ... अहा! हा! कितना सुन्दर महल हैयह रक्टोंन मैं भी ALA-9A- इसी प्रकारकां महल बनवाऊं), चलूकागज -Anml लेकर चित्र बना HEA प (SS Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा अरविन्द कागज लेकर आये परन्तु ... बादल महल गायब था...... हैं! यह क्या? वह महल कहां चला गया? वह तो अब है ही नहीं। कितना क्षणभंगुर है यह दृश्य ? क्या ऐसी ही दशा हमारीहोगी? मैं खद. मेरायौवन,मेरेये भोगविलासर क्या रखा है इनमें? "यौवन,गृह,गो,धन,नारी, हयगय जन आज्ञाकारी। इन्द्रिय भोगछिन काई सुरधनुचपला चपलाई॥") और वह राजा अरविन्द मुनि बनगये। एक दिन बिहार करते हुए पहुंच गये उसी सल्लकीबन में ध्यान में बैठे थे। वज्रघोष हाथी उपद्रव मचा रहा था। मुनि को बैठा देख कर... ... ... हैं ये कौनयेतो कोई परिचित से मालम होते हैं। ओह याद आया। पहले भव में में इनका मंत्री मरूभूतिही तो था कितने शांतहैं येऔर मैं कितना क्रोधी...चलं इनके चरणों कितना क्रोधी... चलाता था स्वीकार कल्याण हो। तूधर्म में बै→। = हे भव्या तेरा कल्याण हो| तूधर्म को स्वीकार कर संयम से रहा किसी जीव को मत मार । किसी को तकलीफ न दे। हथिनौ से दररह। सबका भला सोच। तेरा कल्याण होगा।. Q हाथीने धर्म अंगीकार किया। सूखे घास फूस पत्तेखाने लगा। किसी जीव को उससे कष्टनहो ऐसी क्रिया से रहने लगा हथिनी सेदर रहने लगा Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन बड़ी हैं यह क्या? आया तो था यहां पानी पीने, परन्तु फंस गया हूं कीचड़ में। प्यासलगी इससे निकलना नामुमकिन है। मृत्यु निश्चित है। ऐसे में मुझेचाहिए कि और चल दिया। मैं शांत परिणामों से मरूं,खाना पीना छोड़ दें। और... ... ... वेगवती नदी की ओर.... M हाथी बैठ गया शांतचित्त होकर मानों समाधिमरण || हाथी मर कर बारहवें स्वर्ग में शिप्रभ देव हुआ..... में बैठा हो-इतने में कमठ के जीव सर्प ने उसे डंक हैं ! यह क्या ? मैं यहां कहां ?) मारा और वह मर गया...... かんいかがきれいになれま AMR) 111 CHITRA Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओह | ध्यान आया- मैं पहले भव में हाथी था-धर्मधारण किया,संयम से रहा,मरते समय सन्यास लिया.उसी का यह सब फल है। मुझे अब भी भगवानजिनेन्द्र देव की पूजा पाठ आदि में ही लगे रहना चाहिए। इस प्रकार पूराजीवन -१६ सागर की आयु-एक बहुत लम्बा समय धर्मध्यान में ही बिताया उस शशिप्रभदेवने, | वहां पर इंद्रियसुखही सुख-१६०००ववे बाद भूख लगती तो कण्ठसे अमृत झरजाता और सांस भी लेना पड़ता तो१६ पखवाड़ेके बाद। वहां की आयुपूरी करके पूर्व विदेह क्षेत्र में विद्युतगति भूपालकी विद्युतमालारानी के अग्निवेग नामका पुत्र हुआ। 0000000 बडा होने पर अग्निवेगने मनि दीक्षा ले ली। एक दिन वह मुनि गुफामेंध्यान मग्न बैठे थे। वहां पर एक अजगर आया। यह अजगर वही कमठ काजीव था जो सल्लकीवन में सर्प दुआ था। सर्प मर कर खोटे परिणामों वबदले भावों के कारण पांचवे नरक में गया था वहाँ से मर करहीयहां अजगर हुआ था। मुनि कोध्यान मग्न देखकर फिर अजगर को बैर भाव पैदा हुआ और मुनिमहाराजको डंक मारकर उनका काम, तमाम कर दिया। क S मर कर मुनि महाराज सोलहवें स्वर्ग में देवहुए ... ... ... DIL KUTUDY RDS Uराप्ण्ण्ण्या 00UUUUU M Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवें स्वर्ग की आयु पूरी | करके अश्वपुर नगर के राजा व्रजवीरज की पटरानी विजया के वज्रनाभि पुत्र हुए.... वज्रनाभि चक्रवर्ति बने । अटूट सम्पति१४ रत्न, एनिधि १८ करोड़ घोड़े ८४ लाख रथ २६ हजार रानी छः खण्ड का अधिपति - सब कुछ तो था उसके पास। तो भी धार्मिक क्रियाओं में ही लगा रहता था । बीज राख फल भोगते, ज्यों किसान जग मांही। त्यों चक्री नृप सुख करे, धर्म बिसारे नाहीं ॥ एक दिन....... तो हे महात्मन मुझे वही मुनि दीक्षा दे दीजिये। ना जिससे मैं आवागमन से छूटने का उपाय कर सकूं हे कृपासिंधु | मैं इस कर्मबंधन छूना चाहता हूं । कृपया मुझे धर्म का उपदेश देकर कृतार्थ कीजियेगा, 8 हे भव्य ! तूने भळा विचारा | धर्म ही शरण है। धर्म ही हित है। संसार असार है, शरीर अशुचि है। भोग क्षण भंगुर हैं। संसार में सुख है ही नहीं । सुख तो निराकुलता मोक्ष में है। और मोक्ष प्राप्ति बिना ● मुनिबने हो ही नहीं सकती ।, वत्स ! तेरा कल्याण हो । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वजनाभि मुनि बने, सबकुछ छोड़ दिया। जंगल में घोर तपश्चर्या कर रहे थे कि एक भील ने उन्हें देखा भील.और कोई नहीं था।वहीकमठ का जीव था जो अजगर के शरीरको छोड़कर २२ सागर तक छठे नरक मैं रहा और वहां से निकल कर यहां भील हुआ। मुनि को देख कर... हैं! यह कौन है? यह तो वही मेरा पुराना कई भवों से चला आया, शत्रु है। अब मेरे से बचकर कहां जायेगा। आजतो मै इसको... STAT th Sunuw Ham मुनि मरकर मध्यमवेयक में अहमिन्द्र हुए और भील सातवें नरक गया। यही तो है अच्छे बुरे भावों का फल.......... Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ noonmn AAGAROO वह अहमिन्द्र आयु पूर्ण करके अयोध्याके राजा वज्रबाहु की रानी प्रभावती के आनन्द कुमार नाम का पुत्र हुआ। जवान हुआ,,विवाह हुआ पिताने राज्याभिषेक किया। एकदिन राज्यसभा में आनन्दकुमार राजा बैठेथे कि.... महाराज कीजयहो। मंत्री जी,आपने अच्छी याद दिलाई। महाराज! आज कल अष्टानिका चलो जिन मंदिर में पर्वचल रहाहै। पूजन करने चलें आपभी जिनेन्द्र भगवान कापूजन रचाकर पुण्य लाभ कमाईयेगा एक दिन......हैं यह क्या? सफेद बाल। मृत्युका मियादी वारंट ! बुढ़ापा लो आही गया, मृत्यु भी बहुत जल्दी आ ही जायेगी। क्या ही अच्छा हो झटपट गृहस्थी के झंझट से ट कर मुनिदीक्षाले कर कल्याण मार्ग में लग 5) जाऊं! टपट RONACOM कर मकल्य 40000 SO सफाजपणाप्याण्ण्ण वापरण्याwwwNA बस राजाआनन्द दिगम्बर मुनि बन गये, उत्तम क्षमादि १०धमों का पालन करने लगे,नित्यादि. १२ भावनाओं का चिन्तन किया,२२ परिषद जीत. १६ भावनायें भाई, जिनके भाने से तीर्थंकर प्रकृति काबंध किया... ... HAHAHANI Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकदिन आनन्द मुनिघोर तपस्या कर रहे थे किएक शेर उन पर झपटा यह शेर उसी कमठ काजीव था जो बैरभाव के कारण सातवें नर्क से निकलकर इसी बन में शेर हआ मुनि को देख कर.... अरे यही तो मेरा कई जन्मो का शत्र है। (अब कहां जायेगा मेरे से बच कर । माझपट्टा और कर दूं इसका काम तमाम | VoLA इतना उपसर्ग होने पर भी शान्ति से प्राण छोड़ते है मुनि आनन्द और शुभ परिणामों के कारण पहुंच जाते हैं आनत नाम के स्वर्ग में वहां पर जब उनकी आयु ६महीन शेष रह गई तब वहां सौधर्म इन्द्र ने कुबेर को बुलाकर मंत्रणा की व आगे की व्यवस्था के लिए आदेश दिया... देखो कुबेर आनत स्वर्ग के इन्द्र की आयु केवल ६महीने की बाकी रह गई है। वह वाराणसी में २३वें तीर्थकर होने वाले है। तुम वहां चले जाओ नगरी को सूब सजाओ और १५ महीने तक प्रतिदिन रत्नों की वर्षा करो जोआज्ञा महाराज Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुबेर द्वारा वाराणसी नगरी में नित्य ३५ करोड रत्नों की वर्षा होती रही। ६ महीने बीतने पर एक दिन रात्रि। | के पिछले पहर में राजा अश्वसेन की रानी वामा देवी ने १६ स्वप्न देखे... प्रातः होने पर रानी ने राजा से स्वप्नों की बात बताई और पूछा ! आज मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैंने रात्रि में १६ स्वप्न देखे हैं । कृपया बतलाईये इनका क्या फल होगा ? और उधर स्वर्ग लोक में. चलें भगवान का गर्भकल्याणक उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाये । हैं! आज हमारे आसन क्यों) , डोल रहे हैं । ओ हो ! 12 प्रिये, तुम धन्य हो ! इन सोलह स्वप्नों का फल यह है कि तुम्हारे गर्भ में 23 वें तीर्थकर पधारे हैं । आज वाराणसी में रानी वामादेवी के गर्भ में २३ वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ आये हैं। चलो, सभी वाराणसी को चलें 4 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्गों के देवतागण अपने अपने वाहनों पर वाराणसी की ओर जयजयकार करते हुए चल दिये। वहां | पहुँच कर हम माता जी की सेवा के लिए देवियों को छोड़ कर जा रहे हैं। इससे & महीने बाद पोष बढी ११ को पहले स्वर्ग में .... 604 हैं। आज मेरा यह इन्द्रासन क्यों कांप रहा है। ओहो ! आज तो वाराणसी में 'भगवान पार्श्व नाथ का जन्म हुआ है। आपकी जय हो । आप धन्य है । आप के यहां 23 वें तीर्थकर माताजी के गर्भ में आगये हैं | आप बड़े पुण्यशाली हैं " | अपने आसन से उठ कर 9 पग आगे चलकर सौधर्म इन्द्र ने भगवान को परोक्ष नमस्कार किया और फिर.... अरे सुनो। आज वाराणसी में 23 वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ है। चलें वहां भगवान का जन्म कल्याणक मनायें। 13 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - स्वर्ग से चल दिये सभी देवता लोग भगवान का जन्मकल्याणक मनाने । आगे आगे सौधर्म इन्द्र अपनी इन्द्राणी सहित ऐरावत हार्थी पर,पीछे अन्य देवता गण अपने अपने वाहनों पर सभी नाचते, गाले,जय जयकार करते आकाश मार्ग सेवाराणसी पहुंचे। नगर की परिक्रमा की और....... - LIST (Rijal SDM au 14 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 राजा अश्वसेन के महल में सौधर्म इन्द्र की इन्द्राणी प्रसूतिगृह मेंगई अहा! हा! हा! आज मैं निहाल हो गई। चलू,बालक को ले चलं अपने पति को । सौंपदं, और फिर चलें पांइक शिलापर बालक का जन्माभिषेक करने के लिए। परन्तु यदि बालक को उठाया तो माता को कष्ट होगा। अतः इतनी देर के लिए माता को निद्रा में सुला दूं और एक मायामई बालक को उनके निकट लिटाकर भगवान बालक को उठा लू । 436 प्रिय 100 Capna IN IITTILES TRICCpour Taudai PRETATIODESIDE DOLUCCSETTE YOU ON Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्राणी बालक को सौधर्म इन्द्र को सोपते हुए प्राणनाथ! लो इन्हें लो। कितना सुन्दर बालकहै? धन्य हुए हैं हम आज 1 ES voogumus बाळक क्या है, कमाल का रूप है इनका। मैं तो देखकर तृप्त ही नहीं हो पा रहा हूं। शायद १००० जेत्रों से देख कर तृप्त हो सकू लोचलो १००० नेत्र बना लेला हूं ताकि नेत्रों के द्वारा इन्हें अपने हृदय में उतार सकू।। भगवान बालक को लेकर सौधर्म इन्द्र ऐरावत हाथी पर बैठा है। ईशान इन्द्र ने छत्र लगाया- सनत्कुमार व महेन्द्र चमर ढोर रहे हैं। सब देव देवियां गीत गाते,नत्यकरते पुष्पवृष्टि करते, जुलूस के रूप में पोइक शिला की ओर जा रहे हैं..... SP EoINR LORSMS Sans SCror... -RA Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6000 nog S EX MANMarat S पांइक शिला पर बालक को विराजमान किया। क्षीरोदधितक रत्नों की पैडियां बना कर देवपंक्तियां बनाकर खड़े हो गये। वहां से हाथों हाथ जल ला रहे हैं और सौधर्म इन्द्र आदि १००८ कलशों से भगवान बालक का अभिषेक कर रहे हैं। huren MOTION 17 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फिर सौधर्म की इन्द्राणी ने बालकको कपड़ों से पोंहा वस्त्राभूषण पहनाये। तिलक किया. POOL जुलूसचल दिया वाराणसी को...... 26 P78 इन्द्राणी प्रसूतिगृह में गई बालक को माता वामा देवी के पास लिटाया... Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब माता जाग गई.. अहा! मैं आज कितनी धन्य हूं। कितना सुन्दरबालक है! क्या अदभुत रूप है? क्या मनोहर छवि है? Seso CO LALLA सौधर्म इन्द्र भगवान के माता पिता के पास | पहुंच गये...... TIMILIAN COM आपधन्य हैं। आपके तीर्थकर पुत्रने जन्मलिया है। कृपया हमाराप्रणाम स्वीकार करें। और ये तुच्छ भेट भी 25000 MUT JUODOU Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा अश्वसेन ने भी बालक तीर्थकर का जन्मोत्सव मनाया LCSC अब तो बालक प्रभुबाल क्रीड़ा करने लगे। देवता लोग भी बालक का रूप बनाकर उनके साथ खेलते साते , खुशियां मनाते , नाचते गाते थे। JA4 20 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जक पाश्वजाश६ मईके हुए। बेटा अब तुम जवान हो गये हो,अब तो यही उचित है कि तुम तब एकदिन... विवाह कर लो और गृहस्थी के सुख भोगो । बेटा मैं कबसे स्वप्न । | माताजी, मेरी आयु केवल १०० वर्ष की है। ३० वर्ष संजोरही हैं कि घर में की आयु में मुझे घर छोड़ ही देना है। फिर केवल १४ वर्ष एक छोटी सी प्यारी सी केलिये मैं गृहस्थी के जंजाल में क्यों फंसूं। मैं तो इस बहू आयेगी। बंधन में बिल्कुल भी बंधना नहीं चाहता। कृपया मुझे क्षमा कीजियेगा। और उधर..... । कमठ का जीव जिसने शेर की पर्याय में मुनि आनन्द कुमार को अपने पंजों से मार डाला था, मुनि हत्या के पापसे पांचवें नर्क में गया- वहांपर१६ सागर की आयु पूरी की। वहां से मरकर ३सागर तक और और जगह जन्मधारण कर करके नाना दुःख सहे। फिर किसी पुण्योदय सेमहीपालपुर में महीपाल राजा हुआ। महीपाल राजाकी पुत्री तामादेवी ही भगवान पालनाथ कीमाताथी। जब महीपाल राजा की पटरानी का देहान्त हो गया तो वह राजा महीपाल दुखी होकर लापसीबन गया। और पंचाग्निलप करने लगा। एक दिन वह पंचाग्नि तप कर रहा था कि राजकुमार उधरसेनिकले. अरे। यह तुम क्या) अरे तुझे बड़ापता है कि इसमें क्या है? तू कल का छोकरा कर रहे हो?जिस । क्यातू सर्वज्ञहै दूसरे मैं तेरा नाना और तपस्वी! पर तू इतना लक्कडको तुम उदन्ड कि मुझे नमस्कार तक भी नहीं किया। जना रहे हो उसमें तोनाग नागनी का जोड़ा है। ६/IN rCCOUL KXOXOOO MILIES अच्छा इसे अभी फाइता) हाथ कंगन को आरसी क्या? तुम इसमें फाड़ कर देखलो । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तापसी ने उसी क्षण कुल्हाड़ी से लक्कड़ को फाड़ डाला... उसमें से अधजले नाग नागिन निकले णमो अरिहंताणं,णमो सिछाणं, णमो आयरियाणं,णमो उवउझायाणं, णमोलोएसव्वसाहूणं १ अरे? 2 UOU आयु पूर्ण होने पर यही तापसी मरकर संवर नामका ज्योतिषिदेव हुआ काय णमोकार मंत्रकोसुन कर नाग नागिनी के परिणामो में सुधार हुआऔर मर कर वे देव लोक में धरणेन्द्रवपद्मावती बने। 22 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOCYCLOnmom MoonaMOOCLA जब राजकुमार पार्श्वनाथ ३०वर्ष के हुए, एक दिन अयोध्या के राजा जयसेन का दत पार्श्वनाथ को भेन्ट देने के लिए आया आपकी जय हो।अयोध्या केराजा जयसेन ने आपके चरणो में यह भेट भिजवाई है, कृपया स्वीकार कीजियेगा। MA Arame POOAD यह अयोध्या कौनसी नगरी है? बलाइये तो सही। DO IN000जन कर्मा का नाम महाराज,यह अयोध्या वह नगरी है जहां पर देवाधिदेव प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेवने जन्म लियाथा हैं। भगवान ऋषभदेव की जन्म भूमि। भगवान ऋषभदेव ने तो कर्मों का नाश करके मोक्षको प्राप्त कर लिया था.... .. और मैं अभी भी संसार में फंसा हुआ हूं ! मुझे भी घर बार छोड़ कर अपना कल्याण कर लेना चाहिए। देर नहीं करनी चाहिए। अच्छा चलूं अब मुनि बनने... min 00050000005OOPORapoli cg@codeos 56UOSECOO VAC COOON राजकुमार पाश्वनाथ... 'वैराग्य की भावना का चन्तन कर कल्याण मार्ग पर अग्रसर हो गये... Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लभी पांचवें स्वर्ग से लौकान्तिक देव आ पहुंचे। वे भगवान के लप कल्याणके में ही आते हैं। बाल ब्रह्मचारी होते हैं और अगले भव मैं मनुष्य बन कर मोक्षप्राप्त करते हैं वाहखूब। आपने भला विचारा महाराज|आपको यहीयोग्यहै। आप धन्य हैं। देवोंने पालकी सजाई उसमें पार्श्वनाथ को देवताओं ठहरो, पालकी हम बैठाया और पालकी उठाने लगे कि...... उठायेंगे आपको क्या हक है हम पालकी के उठाने के हकदार क्यों नहीं पालकी उठाने का ? हैं भाई भगवान के गर्भकल्याणक में हम आये,जन्मोत्सव हमने मनाया, फिर पालकी हम क्यों न उठायें CCCCES AirALL UN 13 wwwwwwwwww Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Do "नहीं। पालकी हम उठायेंगे। ये भी मनुष्य हैं और हम भी मनुष्य फिर ये हक हमारा ही तो है । नहीं। दूर हट जाओ। पालकी हम उठायेंगे। हम तुम से बहुत शक्तिशाली हैं अतः हमारा हक है । तुम शक्तिशाली हो तो बनकर दिखा दो मुनि, जो यह बनने जा रहे हैं। निर्णय के अनुसार पालकी पहले भूमिगोचरी राजाओं ने उठाई, कुछ दूर चल कर विद्याधरों ने, और कुछ दूर चलने के बाद नम्बर आया देवों का । Maw भैया, यहां हम विवश हैं। हम मुनि व्रत धारण नहीं कर सकते । संयम धारण करने की शक्ति तो तुम में ही है । हम तुम से भीख मांगते हैं। हमें कुछ क्षण केलिए मनुष्य भव देदो चाहे बदले में हमारा सारा वैभव ले लो । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पालकी को लेकर देव पढ़च गये तन में वहां पर वट वृक्ष के नीचे बैठ गये राजकुमार पार्श्वनाथ । वस्त्राभूषण उतार कर फेंक दिये. केशों को हाथ से उखाड़ डाला और बन गये दिगम्बर मुनि.... MIN TAMILLITERTAL TRA A एक दिन मुनि पार्श्वनाथ आहार के लिए उठे-पहुंच गये राजा ब्रह्मदत्त के यहां निर्विघ्न आहार हुआ,पंचाश्चर्य हुए उसी समय देवताओं ने पुष्प वृष्टि की HIMLINIUIIA/IA WILLIETUVINT 177-A 1 1 / + 26 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ समय बाद एक दिन मुनि पार्श्वनाथ ध्यानस्थ बैठे थे अहिक्षत्र में,ऊपर से जा रहाथा कमठ का जीव संवर नाम का देव अपने विमान में । विमान मुनिके ऊपर आया और अटक गया रुक गया। tu. PAHATTITAll NITM हैं। मेरा विमान क्यों रुक गया? "अरे नीचे वही मुनि बैठा है जो पहले भव में मेरा शत्रु था। इसने मेराबड़ा अपमान लकर, संवर देव ने मुनि पार्श्वनाथपर उपसर्ग देखू कहां जाता है मुझ से बचकर। आज तो सारी कसर निकाल ही शुरू किया.... भीषण वर्षा...तूफान...... अग्निवर्धा, पत्थरगिरे परन्तु, मनिध्यानलूगा । मग्नबैठेरहे.. N Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागनागिनी हैं! यह क्या ? आसन क्यों डोल रहा है? आज के जीव जो हमारे उन परोपकारीपर उपसर्ग धरणेन्द्र हो रहा है, जिन्होंने हमारे प्राण बचाये। पद्मावती थे और हमें णमोकार मंत्र बन गयेथे, सुनाया था। जिसके प्रताप से 1000 अचानक हम यहां उत्पन्न हुए हैं। उनकाआसन चलेंहमें उनका उपसर्ग हिलने फौरन दूर करनाचाहिए लगा ...... और दोनों आगये अहिक्षेत्र में | धरणेन्द्र ने फन फैला कर मुनिपार्श्वनाथ को अपने ऊपर बैठा लिया और पद्मावतीने उनके ऊपर अपने फनसेकत्रलगा लिया बीच में मुनिपार्श्वनाथ ध्यानस्थ बैठे हैं। 11/ COACAMANNo. . aurTim COIN003.. पा Karl CALLL . viiiiii 28 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और सवरदेव भाग गया मुनि पार्श्वनाथ ध्यान में दृढ रहे चार घातिया कर्मों का नाश होगया और बन गये भगवान-तीर्थकर केवल ज्ञानी- अरहत। इन्द्र अपने देवता लोगों के साथ चल दिये भगवान पार्श्वनाथ का केवलज्ञान कल्याणक मनाने के लिए! और इन्द्र की आज्ञा सेकुबेरने समवशरण बना डाला-समवशरण यानि सभामण्डप-बीच में भगवान,चारों ओर १२ कोठों में अलग अलग देव,मनुष्य,तिर्यञ्च, स्त्री आदि-यहाजीवों में बेर विरोधनहीं,भगवान के दर्शनचारों ओर से,रात दिन का भेद नहीं। भगवान पार्श्वनाथ समवशरण में-उनकी दिव्य ध्वनि विरही है। सब बैठे अपनी अपनीभाषामेंसमझ रहे हैं। व्ही परबैठाहेर देवों के कोठे में वही सवर देव। अहाहा! कितना सुन्दर उपदेशहै। मैं कितने जन्मों से इनसे बैर कर कर के पापबंध करतारहा 'नाना प्रकार के दुखसहला रहा। और इधरयेबिल्कुल शांत बने रहे। परिणाम स्वरुपये आज भगवान बने हुए विराजमान हैं। क्या मैं भी ऐसाबन सकता हूं? क्यों नहीं बैर भाव छोड़ दूं। सही। विश्वास बनालूं। मैं क्या हूं? मेरा क्या स्वरूपहै १ इसकी सच्ची श्रद्धाकरलं। इसका जैसाज्ञान करलू और इसी को प्राप्त करने में लग जाऊं। इस भव में न सही अगले भवों में मुनि बन कर मैं अपना कल्याण अवश्य कर लूंगा 4000 BIR MP4 Pa.. भगवान पार्श्वनाथ का विहार होने लगा। जहां जाते जया समवशरण बनजाता। मार्ग में (सब प्रबन्धदेवों का। आगे आगे देवता लोग भूमि साफ करते हुए, गंधोदक छिड़कते हुए पुष्पवृष्टि करते हुए चल रहेहै सबके आगे धर्मचक्र चलरहा है. आकाशामें गमन हो रहा है ,देवता लोग गा रहे हैं , नाच रहे है । बजा रहे हैं दिव्य बाजे VDIA 44 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस प्रकार विहार करते हुए अन्त में पहुंच गये सम्मेदशिखर पर बैठ गये ध्यानमग्न / शेष बचे चार अघातिया कर्म (आयु,नाम,गीत्र.वेदनीय) भी भाग गये चारघालिया कर्म (ज्ञानावरणी,दर्शनावरणी मोहनीय,अन्तराय) पहले ही नष्ट हो गये थे। तभी तो उन्हें केवल ज्ञान हुआथा 10884 आगे क्या हुआ। शरीर तो कपूर की लरह उइगया हाँ बचे रह गये केश और नाखून | अग्निकुमार देव ने अपने मुँकुट से अग्नि जलाई और भगवान के नाखून और केशों को जला डाला उससे बनी भस्मको सबदेवों ने अपने मस्तक पर लगाया। और भगवान आत्माउसे मिल गई मुक्ति,सब झंझटों से,सब कर्मों सेद्रल्यकर्म, भाव कर्मव नो कर्म से। अब वह हो गये पूर्ण निर्विकार ,पूर्ण शुद्ध,पूर्ण ज्ञानी व पूर्ण सुखी। जा पहुंचे मोक्ष मेंजहांसे कभी नहीं लौटेंगे संसार में,कभी नहीं लेंगे अवतार, कभी नहीं होंगे अशुद्ध। और इधर इन्द्रादिक आ पहुंचे भगवान का निर्वाण कल्याणक मनाने.. ATIO आओहम भी भगवान बनें। 30