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________________ ओह | ध्यान आया- मैं पहले भव में हाथी था-धर्मधारण किया,संयम से रहा,मरते समय सन्यास लिया.उसी का यह सब फल है। मुझे अब भी भगवानजिनेन्द्र देव की पूजा पाठ आदि में ही लगे रहना चाहिए। इस प्रकार पूराजीवन -१६ सागर की आयु-एक बहुत लम्बा समय धर्मध्यान में ही बिताया उस शशिप्रभदेवने, | वहां पर इंद्रियसुखही सुख-१६०००ववे बाद भूख लगती तो कण्ठसे अमृत झरजाता और सांस भी लेना पड़ता तो१६ पखवाड़ेके बाद। वहां की आयुपूरी करके पूर्व विदेह क्षेत्र में विद्युतगति भूपालकी विद्युतमालारानी के अग्निवेग नामका पुत्र हुआ। 0000000 बडा होने पर अग्निवेगने मनि दीक्षा ले ली। एक दिन वह मुनि गुफामेंध्यान मग्न बैठे थे। वहां पर एक अजगर आया। यह अजगर वही कमठ काजीव था जो सल्लकीवन में सर्प दुआ था। सर्प मर कर खोटे परिणामों वबदले भावों के कारण पांचवे नरक में गया था वहाँ से मर करहीयहां अजगर हुआ था। मुनि कोध्यान मग्न देखकर फिर अजगर को बैर भाव पैदा हुआ और मुनिमहाराजको डंक मारकर उनका काम, तमाम कर दिया। क S मर कर मुनि महाराज सोलहवें स्वर्ग में देवहुए ... ... ... DIL KUTUDY RDS Uराप्ण्ण्ण्या 00UUUUU M
SR No.033212
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherUnknown
Publication Year2000
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size38 MB
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