Book Title: Parmatma hone ka Vigyana
Author(s): Babulal Jain
Publisher: Dariyaganj Shastra Sabha

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Page 32
________________ आत्म-अनुभव कैसे करें ? आत्मा को जानने का उपाय प्रत्येक व्यक्ति के प्रतिसमय तीन क्रियायें एक साथ हो रही हैं-एक तो शरीर की क्रिया, दूसरे शुभ या अशुभ विकारी परिणाम अर्थात् मन की क्रिया, तथा तीसरी जानन-रूप क्रिया। शरीर की कैसी भी स्थिति हो उसका जानना हो रहा है। यदि शरीर रोगी है तो वहाँ एक तो रोग का होना और दूसरे रोग का जानना दोनों बातें एक साथ हो रही हैं। दो काम एक साथ हो रहे हैं-हाथ का उठना और उसका जानना, रोग का होना और रोगी अवस्था का जानना, नीरोग होना और नीरोगता का जानना। यहाँ पर यह निर्णय करना है कि जिसमें रोगादिक हुए हैं वह मैं हूँ या उसको जानने वाला ? शरीर की अवस्था बदल रही है, जानने वाला इसे जानता है। शरीर बूढ़ा हो रहा है उसको भी जान रहा है, मर रहा है तो उसको भी जान रहा है, परन्तु जो जानने वाला है वह न तो बूढ़ा हो रहा है और न मर रहा है। यहाँ पर यह निर्णय करना है कि मैं तो जानने वाला हूँ जबकि अवस्था बदलने का सम्बन्ध शरीर के साथ है। जिस प्रकार शरीर की प्रत्येक क्रिया, प्रत्येक अवस्था को जानने वाला उसी समय जानता जा रहा है, उसी प्रकार परिणामों की भी चाहे कोई अवस्था हो उसका जानना भी उसी समय साथ-साथ होता जा रहा है, जैसे क्रोध का होना और उसका जानना। क्रोधादिक कम-ज्यादा हो रहे हैं-क्रोध से मान, मान से माया, माया से लोभ-रूप परिणाम हो जाते हैं परन्तु जानने वाला सतत, एकरूप से जो कुछ भी परिणमन हो रहा है उस सबको जान रहा है, जानता जा रहा है। वह क्रोध को भी जान रहा है और क्रोध के अभाव को भी जान रहा है; क्रोध के अभाव में उसका अभाव नहीं हो रहा है। उसका काम तो मात्र जानना है। ___ इस प्रकार यह निश्चित हुआ कि तीन काम एक साथ हो रहे हैं-शरीर-आश्रित क्रिया, विकारी परिणाम और जाननक्रिया। इनमें से (३२)

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