Book Title: Parmatma hone ka Vigyana
Author(s): Babulal Jain
Publisher: Dariyaganj Shastra Sabha

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Page 65
________________ सच्चिदानन्द, चैतन्य-प्रभु हो गया है। यही मोक्ष है, यही निर्वाण है, यही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता है, यही वस्तु-स्वभाव है : 'इक देखिए, इक जानिए, रमि रहिये इक ठौर।' धन्य हैं वे जीव जिन्होंने मनुष्य पर्याय पाकर यह कार्य सम्पन्न किया। राग-रूप आग आत्मा को जला रही है; विषय-कषायों का तो जन्म-जन्म में सेवन किया। हे चेतन ! अब निज-स्वभाव की पहचान करके उसमें लगने का मौका मिला है; देख, यह मौका कहीं खो न जाये। बाबूलाल जैन सन्मति विहार २/१० अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली-११०००२ टेली. ३२६३४५३

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