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सच्चिदानन्द, चैतन्य-प्रभु हो गया है। यही मोक्ष है, यही निर्वाण है, यही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता है, यही वस्तु-स्वभाव है : 'इक देखिए, इक जानिए, रमि रहिये इक ठौर।'
धन्य हैं वे जीव जिन्होंने मनुष्य पर्याय पाकर यह कार्य सम्पन्न किया। राग-रूप आग आत्मा को जला रही है; विषय-कषायों का तो जन्म-जन्म में सेवन किया। हे चेतन ! अब निज-स्वभाव की पहचान करके उसमें लगने का मौका मिला है; देख, यह मौका कहीं खो न जाये।
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