Book Title: Parmatma hone ka Vigyana
Author(s): Babulal Jain
Publisher: Dariyaganj Shastra Sabha

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Page 59
________________ का मन-वचन-काय से त्याग और निज आत्मा में रमण । (५) अपरिग्रह महाव्रत : बहिरंग में समस्त वस्तुओं का त्याग, और अंतरंग में मिथ्यात्व, क्रोध - मान-माया - लोभादि रूप चौदह प्रकार के परिग्रह का त्याग। (६) ईर्या समिति : चार हाथ प्रमाण भूमि देखते हुए सूर्य के प्रकाश में चलना । (७) भाषा समिति : हित-मित-प्रिय वचन बोलना । (८) एषणा समिति : छियालीस दोषों से रहित शुद्ध आहार ग्रहण करना । (९) आदान-निक्षेपण समिति : पुस्तक, कमण्डलु आदि को देख कर रखना - उठाना। (१०) प्रतिष्ठापन समिति : मल, मूत्र, कफ आदि शरीर के मल को जीव-रहित स्थान देखकर त्यागना । (११-१५) पंचेन्द्रियों का जीतना अर्थात् इन्द्रिय-विषयों के तनिक भी आधीन न होना । (१६) समता - सामायिक - आत्मध्यान करना । (१७) वीतराग - सर्वज्ञदेव की वंदना करना । (१८) वीतराग - सर्वज्ञदेव की स्तुति करना । (१९) स्वाध्याय - आत्मचिंतवन करना । (२०) प्रतिक्रमण -- लगे हुए दोषों का निषेध करना । (२१) कायोत्सर्ग – शरीर के प्रति ममत्व छोड़ना, शरीर से भिन्नता का अनुभवन करना । (२२) अर्धरात्रि के बाद, भूमि पर एक करवट से सोना । (२३) दाँतुन, मंजन नहीं करना । (२४) स्नान नहीं करना । (२५) नग्न रहना । (२६) दिन में एक बार भोजन करना । 110 1

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