Book Title: Panchstotra Sangrah
Author(s): Pannalal Jain, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 226
________________ एकीभाव स्तोत्र : २२१ शुद्धे ज्ञाने शुचिनि चरिते सत्यपि त्वय्यनीचा, भक्तिर्नो चेदनवधिसुखा वञ्चिका कुञ्चिकेयम् । शक्योद्घाटं भवति हि कथं मुक्तिकामस्य पुंसो, मुक्तिद्वारं परिदृढमहामोहमुद्राकवाटम् ।।१३।। जो नर निर्मल ज्ञान मान शुचि चारित साधैं । अनवधि सुखको सार भक्ति कूँची नहिं लाधै ।। सो शिव वाँछक पुरुष मोक्षपट केम उपारे । मोह मुहर दिन करी मोक्ष मंदिर के द्वारे ।। १३ ।। टीका– भो देव ! शुद्ध ज्ञाने शुचिनि-निरतिचार-पवित्रे चरिते आचरणे सत्यपि चेद्यपि त्वयि परमेश्वरे इयं अनीचा प्रबला भक्तिों नैव. हि निश्चितं तर्हि मुक्तिकामस्य पुंसः मुमुक्षोः पुरुषस्य मुक्ते: द्वारं शक्योद्घाटं कथं भवति? शक्यः उद्घाटोयस्यतत् ! मुक्तिं कामयतीति मुक्तिकाम: तस्य मुन्ति कामाय ! कथाभूतं मुक्तेदार ? परिदृढा निश्चला महामोहो मिथ्यात्वं तल्लक्षणमुद्रा ययोस्तौ एवं विधौकपाटौ स एव कवाटं यस्मिन् तत् । कथंभूता भक्तिः? कुंचिका । मुद्रा द्विधाक: पुनः अनवधि निर्मर्यादं यत् सुख तस्य अवंचिका-अप्रतारिणी ।। १३ ।। अन्वयार्थ हे नाथ ! (शुद्धे ज्ञाने ) शुद्ध ज्ञान और (शुचिनिचरिते ) निर्मल चारित्र के (सत्यपि ) रहते हुए भी ( चेत् ) यदि ( त्वयि) आपके विषय में होने वाली ( इयम्) यह ( अनीचा भक्ति ) उत्कृष्ट भक्ति-रूपी ( अनवधिसुखावञ्चिका ) अमर्यादित सुखों की कारण ( कुञ्चिका ) कुञ्जी-ताली (नो चेत्) नहीं होवे, तो (हि) सचमुच में ( मुक्तिकामस्य पुंसः) मोक्ष के अभिलाषी पुरुष को ( परिदृढमहामोहमुद्राकवाटम्) अत्यन्त मजबूत पहामोहरूपी मुहरबन्द (ताले ) से युक्त हैं किवाड़ जिसमें ऐसे (मुक्तिद्वारम्) मोक्षके द्वार को (कथम् ?) किस तरह (शक्योद्धाटम् ) खोला जा सकता है ? अर्थात् नहीं खोला जा सकता।

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