Book Title: Panchstotra Sangrah
Author(s): Pannalal Jain, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 270
________________ श्री सरस्वती स्तोत्र : २६५ जिनवाणी का वस्त्र है तथा ज्ञान के आराधक की सम्पूर्ण मनोकामनाओं को पूर्ण करती है तथा विवेकरूप हंसपक्षी पा जो आरूढ़ है ऐसी दिव्यमूर्ति माँ जिनवाणी/सरस्वती हमारी प्रतिदिन रक्षा करें। देवासरेन्द्र नतमौलिमणि प्ररोचि, श्री मंजरी निविड रंजित पादपद्म । नीलालके प्रमदहस्ति समानयाने, ___ वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ।।२।। झुक रहे हैं चरण में देवेन्द्र भी जिनके सदा, मुकुटमणि की किरण से जो दीप्ति पाते हैं मुदा । केश जिसके नौल शोभे, मदमत्त हथिनी चाल है. वागीश्वरि रक्षा करो नित दिव्यमूर्ति प्राप्त है।।२।। अर्थ-जिनके चरण-कमलों में देवेन्द्र नत मस्तक हैं, देवों के मस्तक में लगे हुए किरीटों के ऊपर लगे हुए बहुमूल्य रत्नों की प्रभा से जिनके चरणकमल सुशोभित हैं, जिनके केश नील वर्ण के हैं तथा जिनकी गति मदोन्मत्त है ऐसी सरस्वती ! हमारी नित्य प्रति रक्षा करें। भावार्थ-जिस माँ जिनवाणी/सरस्वती का वन्दन पणियों से जटित मुकुट वाले देव भी करते हैं तथा जो अपनी वाणी के प्रवाह रूप नील वर्ण केशों द्वारा संसार स्वरूप का चित्रण करने वाली है, और जो ॐकार ध्वनि रूप गजगामिनी चाल से १२ सभा में श्रोताओं को मुग्ध करने वाली है ऐसी माँ जिनवाणी प्रतिदिन हमारी रक्षा करें। केयूरहार मणिकुण्डल मुद्रिकाद्यैः, सर्वांगभूषण नरेन्द्रमुनीन्द्र वंद्ये। नानासुरल वर निर्मल मौलियुक्ते, वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ।।३।।

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