Book Title: Panchstotra Sangrah
Author(s): Pannalal Jain, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 277
________________ 272 : पंचस्तोत्र ज्ञानियों की माता, छठा वागीश्वरि, सातवाँ कुमारी, आठवाँ ब्रह्मचारिणी, नवमाँ जगन्माता, दशवाँ ब्राह्मणी, ग्यारहवाँ ब्रह्माणी. बारह्वाँ वरदा, तेरहवा वाणी, नौदहवाँ भाषा, पन्द्रहवाँ श्रुतदेवी और सोलहवाँ गौ—इस प्रकार माँ सरस्वती देवी के पर्यायवाची नाम हैं। एतानि श्रुतनामानि, प्रातरुत्थाय यः पठेत् / तस्य संतुष्यति माता, शारदा वरदा भवेत् / / 8 / / इन श्रुतनाम की पंक्तियाँ, जो उठ प्रात: पढ़ जाय / तुष्ट होय माता सदा, इच्छित वर को पाय / / 811 अर्थ-माँ जिनवाणी के इन उपर्युक्त पर्यायवाची नामों को जो प्रातःकाल उठकर पढ़ता है, उसके ऊपर माँ सरस्वती संतुष्ट होती है और उसके सकल मनोरथों को पूर्ण करती है / भावार्थ-जिनवाणी के पर्यायवाची नामों का प्रात: उठकर जो स्मरण करता है उसकी हेयोपादेय बुद्धि जागृति होती है तथा वह ज्ञान का स्वामी बन इच्छित पद को प्राप्त करता है / सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी / विद्यारम्भ करिष्यामि , सिद्धिर्भवतु मे सदा / / 9 / / नमन सरस्वती मात को, कामरूपिणी वर दे। विद्यारंभ में कर रहा, सिद्ध हो मम सर्वदा / / 9 / / अर्थ-हे सरस्वती देवि ! आप इच्छित कार्य को पूर्ण करने वाली हैं अत: कामरूपिणी हैं, हे मात ! तुम्हें नमस्कार हो / हे देवी मैं विद्यारंभ करूँगा मुझे आपकी कृपा से सदा सिद्धि की प्राप्ति होती रहे।

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