Book Title: Panchstotra Sangrah
Author(s): Pannalal Jain, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 260
________________ अकलंक सोम : २५५ समस्त गुणों के स्वामी, बड़े-बड़े मुनियों से वन्दनीय परमात्मा मुझ अकलंक के लिये बन्दनीय हैं। वे नाम से ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, वर्द्धमान कोई भी हों । गुणों की पूजा जैनशासन में है, व्यक्ति या नाम की नहीं ।। ९ ।। जिसने रागद्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया । सब जीवों को मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया ।। बुद्ध वीर जिन हरिहर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो । भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो।। माया नास्ति जटा कपालमुकुटं चन्द्रोनमूर्दावली खट्वाङ्गं न च वासुकिन च धनुः शूलं न चोग्रं मुखं । कामो यस्य न कामिनी न च वृषोगीतं न नृत्यं पुनः सोऽस्मान् पातु निरञ्जनो जिनपतिः सर्वत्रसूक्ष्मः शिवः ।।१०।। ___ अन्वयार्थ (यस्य ) जिसके (माया) नाना प्रकार के रूप स्वांग बनाना (न अस्ति) नहीं है ( यस्य) जिसके ( जटा ) जटा (कपालमुकुटं) कपालमुकुट ( चन्द्रः) चन्द्रमा ( मूर्दावली ) मूर्द्धावली ( खट्वाङ्गम् ) खट्वांग अस्त्र विशेष/ हथियार ( न ) नहीं है (वासुकिः) वासुकि-सर्प (च) और (धनुः ) धनुष (शूलम् ) शूल (न) नहीं है (च) और ( उग्रम् मुखम्) भयावना मुखम् ( न) नहीं है ( यस्य) जिसके (कामः ) काम ( च ) और (कामिनी ) स्त्री ( न ) नहीं है ( च) और ( यस्य )जिसके ( वृषः) बैल (गीतम् ) गीत-गाना ( पुनः ) और ( नृत्यम् ) नृत्य करना ( न अस्ति) नहीं है ( सः ) वह (निरञ्जनः) कर्ममल रहित , ( सूक्ष्मः ) सूक्ष्म (शिवः ) शिव (जिनपतिः ) जिनेन्द्रदेव ( सर्वत्र ) सब जगह तीनों लोकों में (अस्मान् ) हम सबकी ( पातु ) रक्षा करें । भावार्थ-आचार्यश्री अपने पूज्य देवाधिदेव अरहन्त जिनेन्द्र की शानी बताते हुए यहाँ लिखते हैं--जिसके पास स्वाँगरचना रूप माया, जटा, कपाल-मुकुट, चन्द्रमा, मूर्द्धावली, हथियार,

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