Book Title: Nyayavinischay aur uska Vivechan
Author(s): 
Publisher: Z_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf

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Page 17
________________ ९० : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ न एक सत् दूसरेमें विलीन ही हो सकता है। कभी भी ऐसा समय नहीं आ सकता जो इसके अंगभूत द्रव्योंका लोप हो जाय या वे समाप्त हो जायँ । २- क्या लोक अशाश्वत है ? हाँ, लोक अशाश्वत है, अङ्गभूत द्रव्योंके प्रतिक्षणभावी परिणमनोंकी दृष्टि ? अर्थात् जितने सत् हैं वे प्रतिक्षण सदृश या विसदृश परिणमन करते रहते हैं । इसमें दो क्षण तक ठहरनेवाला कोई परिणमन नहीं है । जो हमें अनेक क्षण ठहरनेवाला परिणमन दिखाई देता है वह प्रतिक्षणभावी सदृश परिणमनका स्थूल दृष्टिसे अवलोकनमात्र है । इस तरह सतत परिवर्तनशील संयोग-वियोगों की दृष्टिसे विचार कीजिये तो लोक अशाश्वत है, अनित्य है, प्रतिक्षण परिवर्तित है । ३- क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत दोनों रूप है ? हाँ, क्रमशः उपर्युक्त दोनों दृष्टियोंसे विचार कीजिए तो लोक शाश्वत भी है ( द्रव्यदृष्टिसे ), अशाश्वत भी है ( पर्यायदृष्टिसे ) । दोनों दृष्टिकोणोंको क्रमशः प्रयुक्त करनेपर और उन दोनोंपर स्थूल दृष्टिसे विचार करनेपर जगत् उभयरूप ही प्रतिभासित होता है । ४- क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत दोनों रूप नहीं है ? आखिर उसका पूर्ण रूप क्या है ? हाँ, लोकका पूर्णरूप अवक्तव्य हैं, नहीं कहा जा सकता । कोई शब्द ऐसा नहीं जो एक साथ शाश्वत और अशाश्वत इन दोनों स्वरूपों को तथा उसमें विद्यमान अन्य अनन्त धर्मोको युगपत् कह सके । अतः शब्दकी असामर्थ्य के कारण जगत्का पूर्णरूप अवक्तव्य है, अनुभय है, वचनातीत है । इस निरूपण में आप देखेंगे कि वस्तुका पूर्णरूप वचनोंके अगोचर है, अनिर्वचनीय या अवक्तव्य है । यह चौथा उत्तर वस्तुके पूर्ण रूपको युगपत् कहने की दृष्टिसे है । पर वही जगत् शाश्वत कहा जाता है द्रव्यदृष्टिसे, अशाश्वत कहा जाता है पर्यायदृष्टिसे । इस तरह मूलतः चौथा, पहिला और दूसरा ये तीन ही प्रश्न मौलिक हैं। तीसरा उभयरूपताका प्रश्न तो प्रथम और द्वितीयके संयोगरूप है । अब आप विचारों कि संजयने जब लोकके शाश्वत और अशाश्वत आदिके बारेमें स्पष्ट कह दिया कि मैं जानता होऊँ तो बताऊँ और बुद्धने कह दिया कि इनके चक्करमें न पड़ो, इसका जानना उपयोगी नहीं तब महावीरने उन प्रश्नोंका वस्तुस्थितिके अनुसार यथार्थं उत्तर दिया और शिष्योंकी जिज्ञासाका समाधान कर उनको बौद्धिक दीनतासे त्राण दिया । इन प्रश्नोंका स्वरूप इस प्रकार है— संजय प्रश्न १- क्या लोक शाश्वत है ? २- क्या लोक अशाश्वत है ? मैं जानता होऊँ तो बताऊँ, ( अनिश्चय, विक्षेप ) ३- क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत है ? Jain Education International 17 बुद्ध इसका जानना अनुपयोगी है ( अव्याकृत, अकथनीय ) 27 For Private & Personal Use Only महावीर हाँ, लोक द्रव्य-दृष्टिसे शाश्वत है, इसके किसी भी सत्का सर्वथा नाश नहीं हो सकता । हाँ, लोक अपने प्रतिक्षण भावी परिवर्तनों की दृष्टिसे अशाश्वत है, कोई भी पदार्थ दो क्षणस्थायी नहीं । हाँ, दोनों दृष्टिकोणों से क्रमश: विचार करनेपर लोकको शाश्वत भी कहते हैं और अशाश्वत भी । www.jainelibrary.org

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