Book Title: Nyayamanjari Part 01
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute
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एतस्यैव रेवतीषु 690 | किमीश्वरतयेश्वरः
489 एतेन शाब्दं व्याख्यातं 403 | कुसुरुबिन्द औदाल 582 एते दै पङ्क्तिपावनाः 619 कूपपूरणयत्नेन
570 एवञ्च परिहर्तव्यः
256 कृतं कान्तस्य तन्वङ्गयाः 553 एवं विचतुरज्ञान 434 | कृतश्च शीलविध्वंसः 472 एवं सत्यनुवादत्वं 260 | कृतार्थाऽस्मि
612 एष प्रत्यक्षधर्मश्च 277 | कृत्तद्धितसमासेषु
208 कृष्णं धर्म सनातनम् 644
कृष्णकेशोऽग्नीनादधीत 627 ऐकाऱ्यांद्वा नियम्येत 392 | केचित्तु पण्डितमन्या: 531 ऐन्द्राग्नमेकादश 106 | केचित् सौगतंमन्याः 498
केनचित् द्वयात्मनैकत्वं 256. ओ
कोऽन्यो न दृष्टो भाग: स्यात् 10,288) ओषधे त्रायस्वैनं 650, 684 को हि तद्वेद यद्यमुष्मिन् 668, 676
क्रियाऽभ्यावृत्तिसत्तायां 525
क्रियावतामभेदे हि . 525 कपिलो यदि सर्वज्ञः
641
क्लेशकर्मविपाक 486, 507 कर्मभिस्सर्वजीवानां 510 क्रियास्तया प्रमीयन्ते
615 कर्मवैगुण्यं समीहा
क्षीरे दधि भवेदेवं . , 148 कल्पनाशब्दोऽत्र
118 कस्यचित्तु यदीष्येत 426 काठकं कालापं
619 | गडिवंदनैकदेशे कामशोकभयोन्माद 271 | गययोपमिता या गौः कारीरी निर्वपेत्
658 | गीतिपु सामाख्या कार्य चेदवगम्येत 468 गृहद्वारि स्थितः
120 कार्य चेन्नावगम्येत 468 गृहीत्वा वस्तुसद्भावं 133 कार्यकारणभावाद्वा
296 गहीत्या सकलं चैतत् कालश्चैको विभुर्नित्य: 361, 526 गोदोहनेन पशु
432 किं पुनस्तत्त्वम् 20 गोश्च पुरीषे
348 कीदृग्गवय इत्येवं 375 | | ग्रहं सम्मार्टि
681 किमयमस्मदादेशः 230 | अहिज्या वयि
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