Book Title: Nyayamanjari Part 01
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute
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वेदस्याध्ययनं सर्व 574 | शुनि चैव श्वपाके च 643 वेदाः स्थानानि विद्यार्या 68 शृणोत ग्रावाणः 680, 684 वेदाच्छास्त्रं परं नास्ति 612 शेषे वेदाध्ययनपूर्वत्वात् 574 शेषे यजुश्शब्दः वेदानधीत्य वेदो वा 627 | शोभतेऽस्य मुखं 668,676 वेदान्तवादिनस्तु
251 | श्यामो वा अस्याहुति 651 वेदान्तिनस्तु महा 251 श्येनेनाभिचरन् 643, 686 वेदे तेनाप्रमाणत्वं
शवाक्यानां वैतसे कटे प्राजा
655 | श्रुतातिदेशवाक्यत्वं .. 384 वैष्टुतं वै वासः 634 श्रुतिलिङ्गवाक्य ।
102 वैष्णवीं जपेत्
682 | श्रुतीरथर्वाङ्गिरसीः व्यापारो न यदा तेषां
श्रोतुश्च प्रतिपन्नत्वं . 601 व्रीहिभिर्यजेत
686, 687
| श्रोतव्यो मन्तव्यः वीहीन् प्रोक्षति 670, 700
| श्रेयःसाधनता ह्येषां . . 270 व्रीहीनवहन्ति
670
435 |
375
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षत्रिंशद्वार्षिकं
615 शं नो देवीरभिष्टये 573,580, 619 शक्तं पदं
405 शब्दं नारभते शब्द: 535
संकल्पः कर्म मानसं 507 शब्दः शब्दान्तरं सूते 564
संकेतस्मरणोपाय .
239 शब्दे दोषोद्भवः
434
| संख्याभावात् 351, 525 शब्दवृद्धाभिधेयांश्च 223, 601 | संख्याभिधायिन: शब्दात् 525 शब्दानित्यत्वसिध्यर्थं 571 | संख्याया: क्रियाभ्यावृत्ति 525 शब्दो यद्यपि वर्णात्मा
| संज्ञित्वं केवलं परम् शरैश्शातितपत्रोऽयं
21 सं ते प्राणो वायुना 478 शशे शृङ्गं पृथिव्यादौ 148 संप्रसारणाच
516 शाखान्तगमथाध्वर्यु 615 सं यजरङ्गानि
478 शान्तिपुष्टयभिचारार्थाः
संयोगविभागाः
527 शान्तो दान्त:
701 | संवृति: परमार्थश्च शास्त्रं च शब्दविज्ञानात् 301 | संशयात्मा विनश्यति
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