Book Title: Nyayamanjari Part 01
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute

Previous | Next

Page 757
________________ 16 138 G6 वेदस्याध्ययनं सर्व 574 | शुनि चैव श्वपाके च 643 वेदाः स्थानानि विद्यार्या 68 शृणोत ग्रावाणः 680, 684 वेदाच्छास्त्रं परं नास्ति 612 शेषे वेदाध्ययनपूर्वत्वात् 574 शेषे यजुश्शब्दः वेदानधीत्य वेदो वा 627 | शोभतेऽस्य मुखं 668,676 वेदान्तवादिनस्तु 251 | श्यामो वा अस्याहुति 651 वेदान्तिनस्तु महा 251 श्येनेनाभिचरन् 643, 686 वेदे तेनाप्रमाणत्वं शवाक्यानां वैतसे कटे प्राजा 655 | श्रुतातिदेशवाक्यत्वं .. 384 वैष्टुतं वै वासः 634 श्रुतिलिङ्गवाक्य । 102 वैष्णवीं जपेत् 682 | श्रुतीरथर्वाङ्गिरसीः व्यापारो न यदा तेषां श्रोतुश्च प्रतिपन्नत्वं . 601 व्रीहिभिर्यजेत 686, 687 | श्रोतव्यो मन्तव्यः वीहीन् प्रोक्षति 670, 700 | श्रेयःसाधनता ह्येषां . . 270 व्रीहीनवहन्ति 670 435 | 375 618 141 26 षत्रिंशद्वार्षिकं 615 शं नो देवीरभिष्टये 573,580, 619 शक्तं पदं 405 शब्दं नारभते शब्द: 535 संकल्पः कर्म मानसं 507 शब्दः शब्दान्तरं सूते 564 संकेतस्मरणोपाय . 239 शब्दे दोषोद्भवः 434 | संख्याभावात् 351, 525 शब्दवृद्धाभिधेयांश्च 223, 601 | संख्याभिधायिन: शब्दात् 525 शब्दानित्यत्वसिध्यर्थं 571 | संख्याया: क्रियाभ्यावृत्ति 525 शब्दो यद्यपि वर्णात्मा | संज्ञित्वं केवलं परम् शरैश्शातितपत्रोऽयं 21 सं ते प्राणो वायुना 478 शशे शृङ्गं पृथिव्यादौ 148 संप्रसारणाच 516 शाखान्तगमथाध्वर्यु 615 सं यजरङ्गानि 478 शान्तिपुष्टयभिचारार्थाः संयोगविभागाः 527 शान्तो दान्त: 701 | संवृति: परमार्थश्च शास्त्रं च शब्दविज्ञानात् 301 | संशयात्मा विनश्यति 512 208 615 64 433

Loading...

Page Navigation
1 ... 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810