Book Title: Nyayamanjari Part 01
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute

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Page 779
________________ 38 47 355 637 निगूहितनिजाकाराः नित्यतैषां प्रसज्येत नित्यत्वमाप्तोक्तत्त्वं वा नित्यत्वाध्यापकत्वाच नित्यत्वे कृतकत्वे वा नित्यानुमेयबाह्यार्थ नित्या भवन्तु कोऽयं वा नित्या वा कृतकत्वेऽपि निदानं न्यायरत्नानां Hin: कालच ५.त न विरोधांऽत्र निमित्तकारणान्यत्वं 637 150 537 480 226 | निर्व्यापारस्य सत्त्वस्य 165 | निशीथे सान्धकारेऽपि 413 | निषिद्ध सेवनप्राय 527 | निषिद्धाचरणोपात्तं 571 | निषेधपर्युदस्तान्य 41 | निष्क्रम्य वर्णादेकस्मात् 513 | निस्सारयितुमिच्छन्ति 414 | नीलाम्बरव्रतमिदं जन नियालिर 08तवस्त्यविगीतां ये 666 नूनमेकः सुसंकल्प . नत्ताभिनयनेवानि नयायिका हिसुन्दा 512न सामान्यता दृष्ट 321 | नेदानी संगृहीतं स्यात् 309 | नेयं त्वगिन्द्रियकृता 308| नैतदस्त्यविगीतां ये 315. नैयायिकानामुत्पर 619 588 109 ना रु ग्रहाता नियतोऽयमनेनेति नियमः प्रतिपत्त्यङ्गं नियमग्रहकाले च नियमश्वानुमानाङ्गं नियमो हि गृहीतोऽ नियोगभावनाभेद निरन्तरं च संयोगः निरसिष्यते च सकलः निरस्ता भ्रान्तयोऽक्षादि गिरत्य चाद्यव्यसन 357 224 169 648 122 67 424 150 58 413 | नैव वा जायते ज्ञानं 354 | नैव शब्दानुसारेण 70 | नैवाधिकपरिच्छेदः . 229 | नो चेत्तथाऽप्यनील म्यात . . .. ...... . . .. :- v.. नमंन्यारवानास्माक नापफएमानुलारण. 440 नोभयातिशयोऽप्येषः पंचरीत्रानंद : ... ." ai निर्विकल्पकविज्ञान निर्विकल्पानुसारेण निर्विकल्पेऽपि तुल्यासौ 214 पथस्यापि महाभाग 253 | पञ्चरात्रेऽपि तेनैव 219 | पञ्चलक्षणकालिङ्गात् ७292 636 282

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