Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 6
________________ घरमां रत्नो सोनाना घरेणा विगेरे पडया होय तेना उपर अभाव बतावाय छे ? नहि केम? तेना उपर रुचि छे. तो ए रीते शास्त्र उपर रुचि होय तो आवं अनादर रूप न बोलाय. अर्थात् अनादरनु वचन कथनारने शास्त्र उपर रुचि नथी तेवं लागे. आ नियुक्तिनो मुनिराजो आदि स्वाध्याय वांचन मननादि करी शास्त्रोना रहस्या समजे उपलब्ध राखे अने अमल-आचार माटे आतुरता बतावे तो आ नियुक्तिओ क्लेषने बदले कल्याण रूप बनशे. जूदा जूदा आगमोमांथी एकत्रित करीने एक साथे संपादन करवानो प्रथम प्रयास छे. वली नियुक्तिनो गाथाओना ठेर ठेर टीकाओ आदिमां उपयोग थया छे, ए गाथाओ कइ नियुक्तिमा वयां छे ? ते जाणी शकाय ते माटे सातेक हजार श्लोक प्रमाण नियुक्तिओनी गाथाओना खास अकारादि क्रम तैयार करीने प्रांते मूक्यो छे. जे अभ्यासीओने अति उपयोगी थशे. छ मास पहेला नियुक्तिओ छपाइ गइ हती परंतु गाथाक्रम तैयार करवामां अने पछी छपाववामां समय नीकली जवाथी आ ग्रंथ प्रकाशित थवामां मोडं थयं छे. आगमोना अभ्यासी मुनिराजो आदि आ नियुक्तिओनी स्वाध्याय आदि उपयोग करी मारा प्रयत्नने सफल बनावे. ए द्वारा आत्मश्रेयनां अणिशुद्ध मार्गमा स्थिर थइ सौ शिव सुखना भोक्ता बना एज शुभ भावना. २०४५, श्रावण सुद-५ ओसवाल यात्रिक गह, पालीताणा. -जिनेन्प्रसूरि Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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