Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 5
________________ छे. तथा तेमां (१) आवश्यक निर्युक्तिनी १६५ मी गाथामां ओघ नियुक्ति छे. (२) दशवैकालिक सूत्रना पांचमा अध्ययन उपर पिण्डनिर्युक्ति छे. ( ३ ) दशाश्रुतस्कन्धना ८ मा अध्ययन पर्युषणाकल्प उपर कल्पनिर्युक्ति छे. मात्र छ अने आ त्रण मलिने ९ निर्युक्तिओनो अहि समावेश कर्यो छे. आ नव निर्युक्तिओनो आसरे ६९१७ ग्रन्थाग्रं थाय छे. I नियुक्ति निबंधना मुद्दा नोंधवा जेवा छे जेथी ते ते आगम अंगे संक्षेपमां घणुं घणुं ज्ञान प्राप्त थइ शके । जेथी मूल निर्युक्तिओना आ संग्रह करवामां आव्यो छे. आ निर्यु - क्तिओ सगंग गणीने तेनी एक साथ टीका होय तो टुंकमां घणु ज्ञान थइ शके. गोविंदनिर्यु कितना उल्लेख आवे छे, परंतु ते उपलब्ध नथी. संसक्तनियुक्ति पण कोइनी छे तेम नोंध मली. निशीथ नियुक्ति आचारांगनिर्युक्तिमां समायेली छे तेम कहेवाय छे. महापुरुष प्रणीत आगम, नियुक्ति, टीकाओ वांच्या पछी अधिकारी मुजब निर्यू क्तिओना स्वाध्यायथी संक्षेप आगम अने विस्तृत टीकाओनो भावार्थ समजी शकाय छे. आजे पूर्ण आगम के टीका वांचनारा विरल छे. आगमो टीकाओ वांचनारा विरल छे तो पछी मूल निर्युक्तिओना उपयोग शुं थशे ? तेम प्रश्न थाय ? वली ज्यारे आगम आदिनी वात थाय त्यारे हवे आगम वांचनार कोण छे ? बीजा प्रकरण टीकाओ चरित्रो वि.नी वात थाय तो अमारा भंडारमां पडेला पुस्तक सडे छे काइ वांचनार नथी - एम कहीने शास्त्री उपर अरुचि बतावाय छे ते हानिकारक छे. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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