Book Title: Niryukti Sangraha Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 4
________________ ************ * अल्प वक्तव्य *** ************* श्री जैन शासन जीव मात्रना श्रेयनुं साधन छे. योग्यता आव्या विना जीव जैन शासन पामी शकतुं नथी. भवनी इच्छा मांग्या विना भवमुक्तिना धर्मनो प्रारंभ थतो नथी.. जीव शिव छे तेम कहीए छोए परंतु जीवने अजीवनी आशा खसे नहि त्यां सुधी जीवने शिव बनावी शकीए नहि. . . . ___जैन शासनमा ४५ आगम आदि गणधरदेवादि कृत मूल आगम छे तेनो संक्षेपमा भाच समजाववा माटे निर्यक्तिओ छे. अने विशेष भाव कहेवा भाष्य छे अने आगमना अर्थाने झीणवटथी चर्चवा चूणि छे. आगम सूत्रोना अर्थ अने भावार्थने समजाववा टीका छे. आ ग्रन्थमां चौद पूर्वधर श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी विरचित नियुक्तिओनो संग्रह छे. आ नियुक्तिओ नीचे मुजब दश हती-(१) श्री आचारांगनियुक्ति (२) आवश्यकनियुक्ति (३) उत्तराध्ययननियुक्ति (४) बृहत्कल्पनियुक्ति (५) दशवैकालिकनियुक्ति (६) दशाश्रुतनियुक्ति (७) व्यवहारनियुक्ति (८) सूत्रकृतांगनियुक्ति (९) सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति (१०) ऋषिभाषितनियुक्ति. __ आमांथो. (४) बृहत्कल्पनियुक्ति (७) व्यवहारनियुक्ति भाष्यमां भळी गइ छ तथा (९) सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति तथा (१०) ऋषिभाषितनियुक्ति मलती नथी. बाकी ६ निर्यक्ति Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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