Book Title: Nibandh Nichay
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 325
________________ ३०८ : निबन्ध-निचय पर अन्धकार फैल जाता है । यदि भट्टारक वीरसेन और पुन्नाट संघीय जिनसेन समकालीन थे तो इन्होंने अपने अपने ग्रन्थों में एक दूसरे के नाम निर्देश कैसे किये ? क्योंकि धवला टीकाकार वीरसेन स्वामी सुदूर दक्षिणापथ में मूडबिद्री की तरफ विचरते थे और टीकाओं का निर्माण कर रहे थे, तब हरिवंश पुराणकार आचार्य जिनसेन भारत की पश्चिम सीमा पर वर्द्धमान नगर में रहकर "हरिवंशपुराण" की रचना कर रहे थे और इन दोनों आचार्यों की कृतियों की समाप्ति में भी तीन वर्षों से अधिक अन्तर नहीं है । इस परिस्थिति में उक्त प्राचार्यों द्वारा अपने ग्रन्थों में एक दूसरे का उल्लेख होना स्वाभाविक प्रतीत नहीं होता । हरिवंशपुराण में प्राचार्य प्रभाचन्द्र और इनके गुरु कुमारसेन के नाम उपलब्ध होते हैं । इन गुरु-शिष्यों का सत्ता- समय विक्रम की ११वीं शती का द्वितीय चरण हो सकता है । कवि धनञ्जय जो "धनञ्जयनाममाला" के कर्ता थे और भोज राजा के सभा-पण्डित, इनका समय भी विक्रम की ग्यारहवीं शती के द्वितीय चरण से पहले का नहीं हो सकता । आचार्य जिनसेन ने अपने "हरिवंशपुराण" के निर्मारणकाल में किस दिशा में कौन राजा राज्य करता था इसका निम्नलिखित पद्य में निरूपण किया है " शाकेष्वन्दशतेषु सप्तसु दिशं पंचोत्तरेषूत्तरां, पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्णनृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम् । पूर्वं श्रीमदवन्तिभूभृतिनृपे वत्सादिराजेऽपरां सूर्याणामधिमण्डलं जययुते वीरे वराहेऽवति ।। ५२||" अर्थात् - जिनसेन कहते हैं- ' ७०५ संवत्सर बीतने पर उत्तर दिशा का इन्द्रायुध नामक राजा रक्षरण कर रहा था । कृष्ण रोजा का पुत्र श्रीवल्लभ दक्षिण दिशा का रक्षण कर रहा था । अवन्तिराज पूर्व दिशा का पालन कर रहा था. पश्चिम दिशा का श्रीवत्सराज शासन कर रहा था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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