Book Title: Nibandh Nichay
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 336
________________ : ४० : श्री कौटिलीय अर्थशास्त्र श्राचार्य चाणक्यप्ररणीत "कौटिल्य अर्थशास्त्र " मौर्य चन्द्रगुप्त के प्रधान मन्त्री श्री कौटिल्यप्रसिद्ध नाम चाणक्य की संस्कृत कृति है । इसमें राजनीति का सांगोपांग निरूपण किया गया है । राज्य, अमात्य, पुरोहित, मंत्रीमण्डल तथा भिन्न भिन्न कार्याध्यक्षों के निरूपण बड़ी सूक्ष्मता से किये हैं । देश की आबादी, आय-व्यय के मार्ग, देश व्यवस्था को अच्छे ढंग से करने के अनेक तरीके, प्रकट तथा गुप्तचर दूतों के प्रकार, उनकी कार्यप्रणालियाँ, सैन्य के विभाग, स्कन्धावारनिवेश, युद्ध के समय अनेक प्रकार के सैन्य- व्यूह और शत्रु को परास्त करने के लिये अनेक उपायों का निरूपण किया गया है । इतना ही नहीं, दीवानी तथा फौजदारी कार्यों के निपटारे के लिए, दीवानी, फौजदारी न्यायों का बड़ी छानबीन के साथ निरूपण किया है। जहां जहां अन्य आचार्यों के मतभेद पड़ते थे, वहां उनके मतों का नामपूर्वक उल्लेख करके अपना मन्तव्य प्रकट किया है । बार्हस्पत्य, प्रोशनस, पाराशर्य, अर्थशास्त्रों को मानने वालों का निर्देश तो स्थान-स्थान पर किया ही है, परन्तु अन्य अर्थशास्त्रकारों के मतों का भी अनेक स्थानों पर निर्देश किया है । भारद्वाज, विशालाक्ष, कौणपदन्त, पिशुन, पिशुनपुत्र तथा आचार्य का मतनिर्देश करके समालोचना की है । सब से अधिक " इति प्राचार्य:, नेति कौटिल्यः" इत्यादि आचार्य के नाम का बार-बार उल्लेख कर उनसे अपना विरोध प्रकट किया है । इन नामोल्लेखों से पाया जाता है कि कौटिल्य के समय में इन सभी आचार्यों के बनाये हुए प्राचीन भारतीय राजनीति का प्रतिपादन करने वाले “अर्थशास्त्र " विद्यमान होंगे । उक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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