Book Title: Nibandh Nichay
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 339
________________ ईश्वरकृष्ण - विरचिता माठरवृत्तिसहिता : ४१ : सांख्यकारिका "सांख्य- कारिका" सांख्यदर्शन का मौलिक बोध कराने के लिए बहुत ही उपयोगी कृति है, जो सांख्यदर्शन के प्राचीन " षष्ठितन्त्र" सिद्धान्त के अनुसार बनाई गई है । इसमें कुल ७३ कारिकाएँ हैं । , " सांख्य कारिका" को "माठरवृत्ति" के निर्माण के समय तक सांख्यदर्शन का संक्षिप्त स्वरूप निम्न प्रकार से था बुद्धि, अहंकार, मन, पांच ज्ञानेन्द्रिय, पांच कर्मेन्द्रिय, पांच भूत तथा तन्मात्राएँ, पांच स्थूल शरीर, प्रकृति और पुरुष इन २५ तत्त्वों के ज्ञान से सांख्य-दर्शन में आत्मा का अपवर्ग अर्थात् मोक्ष माना गया है । जब तक आत्मा अपना स्वरूप नहीं जान पाता तब तक वह आधिभौतिक, प्राधिदैविक, आध्यात्मिक तापों को अनुभव करता है । जन्म-मरण के दुःखों को भोगता रहता है । आठ प्रकार के देवगति सम्बन्धी, पांच प्रकार के पशुपक्षी स्थावरादि तिर्यञ्च गति सम्बन्धी और एक विध ब्राह्मण से लेकर चण्डाल तक के मनुष्य भव सम्बन्धी सुख-दुःखों को भोगता है । देवगति में सात्विक गुणों की प्रधानता रहती है । तिर्यग्गति में तमोगुण की और मनुष्यगति में रजोगुण की प्रधानता और शेष दो गुणों की गौराता रहती है । सांख्य दर्शन का ग्रात्मा अथवा पुरुष प्रतिशरीर भिन्न होता है । कर्त्ता न होने पर भी प्रकृति के विकारों में फंसा होने से औपचारिक रूप से सुख-दुःख का भोक्ता माना गया है । वह सांख्य-दर्शन काल, स्वभाव अथवा ईश्वर को जगत्कर्त्ता नहीं मानता । जगत् की रचना, प्रकृति के विकारों से होती रहती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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