Book Title: Nibandh Nichay
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 337
________________ ३२० : निबन्ध-निचय नाम के प्राचार्यों द्वारा निर्मित 'अर्थशास्त्र" अब विद्यमान होंगे या नहीं यह कहना कठिन है। शुक्रनीति तथा बृहस्पतिनीति के प्रतिपादक जो छोटे-छोटे ग्रन्थ उपलब्ध हैं वे सब पढ़े हैं, परन्तु कौटिल्य अर्थशास्त्र के सामने उनका कोई महत्त्व नहीं। कौटिल्य ने अपना यह ग्रन्थ पन्द्रह अधिकरणों, १५० अध्यायों और १८० प्रकरणों में पूरा किया है। ग्रन्थ का कलेवर ६००० अनुष्टुप् श्लोकों के बराबर गद्य से सम्पूर्ण बना दिया है। __ ग्रन्थ के अधिकरणों के शीर्षकों के पढ़ने से ही पाठकगण को अच्छी तरह ज्ञात हो जायगा कि कौटिल्य ने इस ग्रन्थ में किन किन विषयों का प्रतिपादन किया है। अधिकारों के शीर्षक(१) विनयाधिकरण (२) अध्यक्ष-प्रचाराधिकरण (३) धर्मस्थीयाधिकरण कण्टकशोधनाधिकरण योगवृत्ताधिकरण (६) मण्डलयोनिअधिकरण (७) षाड्गुण्य अधिकरण व्यसनाधिकारिकाधिकरण अभियास्यत्कर्माधिकरण संग्रामिकाधिकरण (११) संघ-वृत्ताधिकरण (१२) प्राबलोयसाधिकरण (१३) दुर्गलम्भोपायाधिकरण (१४) औपनिषदिकाधिकरण (१५) तन्त्रयुक्ति-अधिकरण अर्थशास्त्र की पुस्तक के अन्त में "चाणक्यसूत्र' मुद्रित हैं, जिनके पढ़ने से चाणक्य की राजनीति का अधिक स्पष्टीकरण हो जाता है। "ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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